यात्रा,भ्रमण,सैर और सफर…..
ये सभी शब्द अलग-अलग वर्णों से
मिलकर बने होते हैं…..
मतलब इन सभी के घूम फिर कर के
एक ही निकलते हैं…..
इन शब्दों को सुनकर दिमाग भी
यात्रा पर निकल जाता है….
विचारों के जरिए ही यात्रा करता हुआ
नज़र आता है…
इंसान की जिज्ञासु प्रवृत्ति ही शायद यात्रा
करने के लिए प्रेरित करती है…..
सामाजिक जिम्मेदारियां निभाने के मद्देनजर
भी यात्रा की जाती है…..
तो कहीं सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन ही यात्रा
का उद्देश्य होता है…..
कई लेखकों का हमेशा से यह मत रहा है कि
यात्रा केवल तफरीह के इरादे से ही नही होती…….
यात्रा व्यक्ति को जोड़ती है उस जगह से, जहां की
वह यात्रा कर रहा होता है…..
कहीं ज्ञान की भूख यात्री को यात्रा पर
खींच ले जाती है……
तो कहीं यात्रा की भूख यात्री को
तमाम धर्म ग्रंथों और भाषाओं के करीब
लेकर जाती है……
यात्रा को अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य
मानने वाले यात्रियों के कारण ही
तमाम मानव जातियां और सभ्यता अस्तित्व में आई…..
अस्तित्व में आने के बाद ही
समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाईं….
यात्रा ने कभी,कहीं इंसान को
इतना बदल डाला कि
व्यक्ति ने अपना देश और समाज
सभ्यता और संस्कृति को छोड़कर
दूसरे देश की संस्कृति को अपनाकर
अपना ठिकाना ही बदल डाला……
हर इंसान की यात्रा का उद्देश्य अलग
हर इंसान की यात्रा की पसंद अलग…..
किसी का इतिहास से होता है गहरा लगाव….
ऐसे लोगों का हमेशा से रहता है
अतीत की चीजों से गहरा जुड़ाव…
ऐतिहासिक इमारतें हों या शासक और सत्ता…
हर किसी के बारे में जानकारी जुटाना होता है मुद्दा…..
जितनी पुरानी वस्तु और स्थान….
उतना ही समृद्ध वहां का इतिहास….
किसी को प्राकृतिक सुंदरता से भरी हुई
जगहें अपनी तरफ खींचती हैं…..
किसी ने पैदल ही यात्रा करने की ठानी…..
तो किसी ने वाहनों या जानवरों की कर ली सवारी….
किसी को रोमांच के साथ यात्रा पसंद…..
तो कोई शांत भाव से प्रकृति में डूबता और उतराता……
अगर हम यात्रा के उद्देश्य की गहराई में उतरते हैं तो
यात्रा और आध्यात्म का घनिष्ठ रिश्ता समझ में आता है…..
इंसान का घुमक्कड़ स्वभाव ही यात्रा करने के लिए
प्रेरित करता है….
इसी आदत के कारण इंसान तमाम सभ्यताओं और
संस्कृतियों के करीब होता हैं……
(सभी चित्र इन्टरनेट से)