सुना है ऊपर वाले के दरबार मे हर
फरियाद कुबूल होती है…..
निकलती है जो सच्चे मन से
छल और धोखे से परे
वो आवाज कुबूल होती है….
दिखा दिया अगर मालिक ने अपनी
कृपा का असर……
तो दुनिया की हर बात
ऊपर वाले की मर्ज़ी ही क्यूँ लगती है….
छोड़ कर खुद को ऊपर वाले के द्वार पर ….
विश्वास के सहारे,और कर्मों के आसरे ही तो
जीवन की नइय्या पार लगती है…
अच्छा अब ये तो बता….
जीवन के सफर मे कभी गिरना, कभी संभलना….
कभी विचारों के साथ उठापटक कराना….
इसमे भी क्या तेरी ही रज़ामंदी है ….
छुपा कर चेहरों को धोखे के मुखौटों के पीछे…..
बच सका है क्या कोई तेरी नज़रों से दूर….
ऐ ज़माना अब तू बता!तेरी आदत क्यूँ
हर समय चाल चलती हुई सी लगती है ……
रख सके तो अपनी दुआ और दया का असर
सब पर रखना….
भूल जाता है ज़माना ये श्वासों की आवाजाही
ऊपर वाले की सौगात से ही तो चलती है…..
मत डालना भ्रम मे अपनी बाजीगरी के निश्छल मन को……
ऐसा लगता है मानो तेरी रहमत
खुले दिल से कर्मों मे उतरती है…..
तुझसे बड़ा न कोई इस लौकिक, अलौकिक जगत् मे
हिसाब किताब करने वाला…..
तेरे पास तो हर मर्ज की दवा होती है….
तेरे बहीखाते मे तो हर बात, अर्ज हुआ करती है….
रखना अपनी इनायत हर किसी के ऊपर…..
सुना है हमने तेरी कलम, खुली आँखों से
बिना किसी भेदभाव के चलती है….