( चित्र pixabay से )
भारत वर्ष गर्वान्वित दिखा….
प्रजातंत्र सर्वोपरि दिखा…..
विशेषणों की भरमार दिखी…
सक्षम नेतृत्व की हुंकार सुनी….
किसी ने जलजला कहा….
कहीं सुनामी सुनाई पड़ा….
कहीं समंदर दिखा आशा से ज्यादा गहरा …..
राष्ट्रवाद का बोलबाला था….
नया इतिहास लिखा जाना था….
धन,संपत्ति, ऐश्वर्य, चाटुकारिता, वंशवाद
सब कुछ परे दिखा….
छिछली राजनीति, खोखले वादे,खोखले नारे
धराशायी दिख रहे थे….
नेतृत्व पर विश्वास की जमीं,फलती फूलती दिखी….
माँ भारती के साथ,प्रजातंत्र मुस्कुरा रहा था….
बड़बोलेपन पर ताला नज़र आ रहा था….
था यह,भारतीय राजनीति मे आया हुआ भूचाल….
जहाँ राष्ट्रवाद! धर्म, संप्रदाय,जाति की बात से ऊपर उठा…..
युवा मतदाताओं ने भी अपने मताधिकार का
सार्थक उपयोग किया था…..
कथनी और करनी मे समानता की बात
सर्वमान्य लग रही थी….
मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के तहत
की जाने वाली राजनीति…..
अपनी पहचान खोती सी लग रही थी….
भारतीय मतदाताओं ने अपनी आँखों और दिमाग
पर बांधी हुई पट्टी को खोल डाला….
सारे विश्व को भारतीय जनमानस का चेहरा
विश्वास के साथ दिखाया….
धर्म की राजनीति….
जाति की राजनीति….
स्वार्थ की राजनीति…..
परनिंदा के साथ की जाने वाली राजनीति…..
बवंडर के साथ उड़ती दिखी….
नये भारत की….
स्वस्थ विचारधारा की….
सकारात्मक दृष्टिकोण की…
विजय पताका फहरी….
समझ मे आ रही थी….
भारतीय जनमानस को गूढ़ सी यह बात….
पारदर्शिता, कार्य के प्रति ईमानदारी….
स्वयं की जिम्मेदारी….
जमीन से जुड़ाव….
चाटुकारिता का अभाव….
ज़रा सा ‘मन की बात’करने का स्वभाव….
निश्चित रूप से संजीवनी बूटी का काम करता है…
देशभक्त एवम्, स्वार्थ से परे रहने वाले इंसान को….
लोकतंत्र ! विश्वास के साथ
बार बार चुनता है…..