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बातें महानगरीय जीवन की

by 2974shikhat February 1, 2018
by 2974shikhat February 1, 2018

Delhi Monuments

बड़ा अजीब सा है न ये ,दिल वालों का दिल्ली शहर ।कहीं दिखता हंसता खिलखिलाता ,कहीं दिखता विचारमग्न , कहीं दिखता झुंझलाता हुआ , किसी का गुस्सा किसी पर उतारते हुए ।

घर से बाहर निकलो तो गाड़ियों का रेला दिखता , वहीं कहीं भारी भीड़ में भी इंसान अकेला दिखता ।

Birds

चौराहों पर रुकते ही कबूतरों का झुण्ड एक साथ एक दिशा में उड़ चला । उड़ते समय कुछ पलों के लिए ही सूर्य की चमकीली किरणों को छुपा कर अंधेरा कर गया ।

देखते ही देखते फिर से तारों को हिंडोला समझकर या तो झूला झूलने लगा या दानों की तलाश में अलग-अलग दिशाओं में बढ़ चला ।

Bird

अचानक से पेड़ पर बैठा हुआ बाज दिखा । अपने खाने को अपने पंजों के बीच में दबाया हुआ था । बिना व्यवधान वाली शांत सी जगह की तलाश में अपनी गर्दन को चारों दिशाओं में घुमाया हुआ था।

कबूतरों और लालची कौओं को ,आसपास घूमते देख ज़रा सी नजाकत के साथ अपने पंखों को फैला लिया , अपने खाने को पंखों के भीतर छुपा लिया।

शायद दंड का भय हो या , इन्सानों में बची हो सभ्यता , अन्य शहरों की तुलना में ज़रा सा गाड़ियों का हार्न , चौराहों पर कम सुनाई पड़ता।

लेकिन रिक्शा हो या दुपहिया वाहन भारी भीड़ में भी किसी न किसी तरह किसी कोने से सरकता दिखता।

सर्द मौसम में छोटे बच्चों की सुबह दुखदाई होती है ।जब शिक्षा की जरूरत के मद्देनजर स्कूल बस या वैन की सवारी होती है।

स्कूल के बैग का बोझ इनके कंधों पर दिखता ,छोटे बच्चों को कपड़ों की गर्माहट महसूस होते ही इनका सिर वैन या स्कूल बस की खिड़कियों पर नींद से बोझिल आंखों के साथ दिखता।

Daily life

फुटपाथों पर सुबह से ही सज जाते हैं ,खाने की चीजों के ठेले ,बस इसी कारण फुटपाथ भी रौनक से भरे दिखे ।

इन जगहों पर खाना कुछ लोगों की जरूरत तो ,कुछ लोगों के लिए जीभ के स्वाद के साथ मनोरंजन भी होता है , वहीं कई लोगों के लिए उनकी शान में तौहीन का मुद्दा बनता है ।

बड़ी अजीब सी बात मुझे महसूस होती है ,शायद कई लोग इस बात से सहमत न हो ,व्यक्ति के स्वभाव ,संस्कार ,हुनर की जगह ये शहर वेशभूषा , बनावटीपन और ,दिखावे से इंसान को परखता है।

जो सामने दिखता है , बस वही सही होता है ,इस बात को यह शहर बड़ी गहराई से मानता है ।शायद इसी कारण से इंसान इस शहर में रिश्तों मे ज्यादा बिखरता है

अधिकांश लोग अपने आप को दूसरों के मापदंड के अनुसार ढालने की कोशिश में जुट जाते हैं। अपने हुनर और वास्तविक स्वभाव पर नकल और दिखावे की परत चढ़ाते जाते हैं।

भीख मांगने का व्यापार चौराहों पर फलता और फूलता दिखता। इंसान के अंदर की करूणा के भाव को यह व्यापार छलता हुआ दिखता ।

भिखारी भीख मांगने की कोशिश मे तरह तरह की विकृतियों और मुखाकृति के साथ दिखते , सबसे पहले भीख देने वाले इंसानों के चेहरे को पढ़ते।

Daily life

चारों तरफ दिखते मदहोश इंसान दो हाथ ,दो पांव,दो आंख,दो कान ,एक ऊंची नाक के साथ दो इयर प्लग और हाथ में एक मोबाइल है ,महानगरीय इंसान की सही पहचान।

जब तक आंखें फोन के दायरे से बाहर नहीं निकलती तब तक सामने वाले की बातों को सुनने की सुध नहीं रहती।

यही शहर कहीं ढेर सारी हरियाली के साथ दिखता तो कहीं ऊंची इमारतों के कारण हरियाली को सीमित दायरे में समेटता दिखता ।

इंसानियत का दायरा इस शहर में सिमटता दिखता इंसान सोशल मीडिया के दायरे में उलझता और सिमटता दिखता।

ऊंगलियां की पैड पर बड़ी जोर से थिरकती हैं। काल्पनिक दुनिया और काल्पनिक भावों को वास्तविक समझती हैं।

शायद इसी वास्तविकता को नजरंदाज कर महानगरीय संस्कृति फलती और फूलती है ……

( सभी चित्र इन्टरनेट से)

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2974shikhat

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