( चित्र दैनिक जागरण से )
प्रकृति की ‘नीरवता’
अद्भुत एहसास कराती है….
‘नीरवता’ के मध्य ही
प्रकृति से वार्तालाप कराती है….
अनंत व्योम को घेरे हुये ‘नीरद’ भी
आकार लेते हुये से दिखते हैं…,.
ऐसा लगता है मानो,वो भी….
नीरव वाणी को,सुनने के लिए
उत्सुक लगते हैं…
भिक्षु की मौन वाणी
अनंत गहराइयों मे गूंजती है…….
आकाश मे विचरण करते हुये ‘खग’
उस मौन वाणी को,सुनने की कोशिश
करते हुये लगते हैं……
देखते ही देखते बादल,मानव स्वरूप
आकार निर्मित करते हैं…..
ऐसा लगता है, मानो
इरादा उनका भी, भिक्षु की वाणी के साथ
मौन की गहराइयों मे,उतरने का है…..
पेड़ पौधों के साथ पहाड़, सभी शांत
लेकिन,चेतना के साथ दिखते हैं…..
प्रकृति की नीरवता,तब टूटती है जब,’मेघ’
बूँदों के रूप मे बरसते हैं…..