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हर जीवन को चाहिये होता है
साँसों का साथ……
साँसों के साथ ही चलता है
जीवन दिन रात……
साँसों के बिना जीवन कहाँ चल पाता है……
चलता हुआ जीवन अचानक से
रुक जाता है……
इसीलिये कहा जाता है साँसों के साथ ही तो
बँधी होती है “जीवन की डोर”……
ईश्वर के हाथ मे ही तो होती है इसकी छोर……
चलती हुयी साँसों को
अनवरत चलने के लिए
अनाज का साथ चाहिए होता है…..
तरह तरह के अनाज दिखते हैं
हमेशा जीवन के साथ…..
इंसान की इसी जरूरत के मद्देनज़र
प्रकृति करती है अपना काम…..
किसान की पता नही क्यूँ
अनाजों से हमेशा बनती है…..
उन्हीं के हाथों से कभी रबी तो कभी खरीफ
की फसल उगती है…..
ध्यान से देखो अगर खेतों को
तो ये बदसूरत सी मिट्टी
कैसे इतना जरूरी काम करती है…..
कहीं होती है काली,कहीं पीली,कहीं लालिमा से भरी…..
अब उधर देखो कीचड़ के साथ कमल को लेकर खड़ी…..
कितना आश्चर्यजनक ये नजारा होता है…..
ये जीवन जीते समय भी मिट्टी के भरोसे
बाद मे भी मिट्टी के साथ ही तो होता है……
इसी बदसूरत सी मिट्टी मे अंकुर के साथ
जीवन पनपता है….
देखते ही देखते खेत लहलहाते हैं…..
अपनी हरियाली से आँखों को सुकून देकर
मन को खुश कर जाते हैं…..
कितनी मुश्किलों और श्रम से ये अनाज पनपता है….
रास्तों पर चलते हुए जीवों को देखो
तो खाने के लिए गरीबी के साथ
इंसान क्या जानवर भी झगड़ता है……
कितने लोग भुखमरी का शिकार होते हुए दिखते…..
निवालों के बिना साँसों की डोर को छोड़ते हुए दिखते…
गरीबी और भुखमरी सारे विश्व की समस्या है…..
अनाज को बर्बाद करने से पहले
एक बार भूख को महसूस करना चाहिए…..
क्योंकि फुटपाथ पर पड़े और भूखे घूमते हुए जीवन को भी
रोटी का निवाला चाहिए…..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )