(चित्र internet से )
कवि गोपालदास नीरज की कुछ पंक्तियां उनके हौसले और बुलंद इरादों की बात को कहते हुये समाज को भी प्रेरित करती जाती है,कभी गुनगुनाती जाती है ,कभी प्यार के मीठे बोल तो कहीं जीवन के सफर के झोल…जहाँ जैसे बना जीवन के सफर पर आगे बढ़ते रहे…
कभी लिखते हैं कि..
“कारवां गुजर गया,गुबार देखते रहे”
तो कभी लिखते हैं….
“न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ
बस इतनी ही तो बात है
किसी की आँख खुल गई
किसी को नींद आ गई”
कभी तो ….”मानव कवि बन जाता है”
यह बात भी बता जाते हैं
मेरी आज की रचना को कहानी कहो,या कहो कविता….
महान कवि,गीतकार श्री गोपालदास नीरज जी को श्रद्धांजलि के रूप मे सर्मपित है……
भोर की किरणें सुबह के होने का
एहसास कराती हैं…..
कभी चमकीली,कभी चटकीली कभी तीक्ष्ण…..
कभी कोमल तो कभी गुनगुनी,और सुनहरी सी किरणें …
जीवन पथ को आलोकित करती जाती हैं….
कवियों या लेखकों की कलम
सिर्फ उजालों मे ही नही चला करती….
ध्यान से देखो और समझो अगर उनके डीवन को….
उनके भावों और उनके एहसासों को….
भोर की छिटकी किरण हो ….
या छाया हो तिमिर गहरा ….
चारो तरफ घना अंधेरा ….
शाम के धुंधलके मे, सिमट चुकी हो रोशनी …
फिर भी अंधेरों के बीच मे, छिटकी होती है रोशनी…..
ये कलम और कागज का ही तो होता है कमाल……
जो लेखक का साथ,सम और विषम परिस्थितियों
मे निभाती है…..
इस कलम का भी अपना ही फितूर होता है…..
कुछ लिखने का जुनून सा होता है……
कभी विद्रोही बन कर लिखा देती है…..
कभी बचकानी सी बात ,कभी आध्यात्मिकता का साथ……
कभी तो विचार हिम्मत और हौसलों को
बोलते जाते हैं …..
जीवन पथ पर सकारात्मकता के साथ डोलते
जाते हैं…….
रचनाकारों की रचनायें…..
कभी समाज को आइना दिखाती हुई सी लगती हैं…..
कभी कल्पनाओं के समंदर मे
गोते लगाती हैं……
तरह तरह के गीत और कवितायें
लिखवाती हैं ….
कलम की आवाज मूक होकर भी बोलती है……
बिकी न हो अगर कलम तो….
सच मे समाज को आइना दिखाती है …..
लेखन की दुनिया बड़ी अनोखी और प्यारी होती है …..
कवियों ,गीतकारों और लेखकों की कागज और कलम से
सच्ची यारी होती है…..