आकाश मे दिखे चटकीले रंग तमाम….
उड़ता दिखा हवा के रुख के साथ
रंगों का संसार….
जमीन की तरफ भी दिखे रंग तमाम….
कभी ऊपर तो, कभी नीचे हो रहे थे….
अपनी चंचलता दिखाते हुए,धरा को
बार बार चूम रहे थे…..
ऐसा लग रहा था,कूदते फाँदते हुए
ऊँचाई पर जाने की, अपनी सोच को
कभी सँजो तो, कभी खो रहे थे…..
न था वो इन्द्रधनुष, न चुलबुला सा बुलबुला…..
ध्यान से देखा तो दिखा
गुब्बारों का रंगबिरंगा सा गुच्छा…
कुछ थे समूह मे, तो कुछ थे अकेले…..
हवा के रुख के साथ
अनजानी सी दिशा की तरफ बढ़ चले….
नीले रंग के आकाश मे उड़ते हुए
ढेर सारे रंग आँखों को भा रहे थे….
बादल और परिंदों के साथ गुब्बारे भी
आकाश मे छा रहे थे…..
आस पास मे हो रहा हो,खुशियों से भरा
कोई भी आयोजन….
ये गुब्बारे भी बन जाते हैं, खुशियों को
जतलाने का,एक और माध्यम……
प्रगति के साथ-साथ ,इन गुब्बारों ने भी
अपने आप को, सजाया और सँवारा है…..
चटकीले रंगों के साथ-साथ
वाक्यों और आकृतियों को भी अपना
परिधान बनाया है…
बच्चों का मन, हमेशा गुब्बारों को
देखकर ललच जाता है…..
हमेशा अपने हाथों मे, पकड़ने के लिए
मचल जाता है…
कभी-कभी अलग-अलग रंग के गुब्बारे
आयोजन के बारे मे, बिना बताये ही
बोल जाते जाते हैं…..
केसरिया सफेद और हरे रंग के गुब्बारे
देशभक्ति की भावना को जगा जाते हैं…..
गुब्बारों का महत्व, सजावट की दुनिया मे
कितना बढ़ गया….
कपड़ों के रंगों से, मिलते जुलते हुए रंगों के गुब्बारे से
आयोजन स्थल, सज और सँवर गया….
कान लगाकर सुनो तो, ये फूलता हुआ
गुब्बारा भी कुछ कहता है…..
अपने अंदर ज्यादा, हवा न भरे जाने की बात
को बड़े प्यार से बोलता है…..
अति किसी भी चीज की,बुरी होती है…..
ज्यादा भरी हुई हवा, गुब्बारे की दीवाल
को भी भेद देती है…
बातें करते करते मेरे हाथ से, गुब्बारा छूट गया…
डोर के साथ ही, गुब्बारे का गुच्छा उड़ चला….
अपने चेहरे को, मुस्कान से सजाया हुआ था……
बोला जब तक है जीवन
तब तक हवाओं के साथ
मै तो आकाश को छूने बढ़ चला…
( समस्त चित्र internet के द्वारा )