अस्पताल का वेटिंग रूम भी
कितना बातूनी दिखता है…
ज़रा सा ज्यादा बोलता है…
ज़रा सा कम सुनता है…
हर कोई अपने मे व्यस्त….
डाक्टरों का जीवन मरीजों
की भीड़ के कारण अस्तव्यस्त….
कहीं नवजीवन अपने
हाथ पाँव को धीरे-धीरे हिलाता….
अपने संरक्षको की गोद मे
हौले से कसमसाता..
दूसरी तरफ देखो तो बीमार व्यक्ति
सहारे की आस मे डगमगाता…
अपने शरीर के कष्टों के बारे मे
सोचकर उसी मे डूबता उसी मे उतराता…
दिखता कहीं कोई असाध्य रोग से ग्रसित….
तो कोई सर्दी जुकाम से पीड़ित..
टिशू पेपर,रुई और पट्टी को देखकर
कपास के पौधे और सफेद फूल
याद आ गये…..
धवलता के साथ आँखों के सामने
काली मिट्टी मे खिलखिला गये…
वही कपास के फूल, वही रुई
जरूरतें इनकी मन को छुई…..
टिशू पेपर,रुई और पट्टी सभी की उपयोगिता…
कचड़े के डिब्बे मे जाने से पहले दिख जाती है…
ऐसा लगता है मुस्कान के साथ बोलती हुई जाती है…
जिसका जितना जीवन उतना ही काम साधना
अब व्यर्थ का क्या ज्ञान बाँटना….
इसीलिये यदि कभी टिशू पेपर,रुई या पट्टी के
ऊपर ऊँगली उठी तो व्यर्थ मे ही उठी….
वही रुई काम कितना अलग-अलग…
भगवान के सामने ज्योत बन जली..
तो मंदिर को रोशन किया..
घावों को साफ किया तो भी
ईश्वर के लिये काम किया..
चमचमाते हुए अस्पताल ज़रा से
रुहानी से लगते हैं…
शांत होकर सोचो तो ज़रा से रहस्यमयी
से लगते हैं….
आते जाते हुये लोगो के चेहरे को देखो..
हर किसी के चेहरे कुछ न कुछ कहानी कहते हैं….
( समस्त चित्र internet के द्वारा )