दिन की रोशनी भी कभी-कभी
अँधेरे का एहसास कराती है….
मौसम सर्दियों का हो या बरसात का
आकाश की रोशनी को बादलों या
कुहरे के पीछे छुपाती है…
इंसान के हौसले और आत्मविश्वास को
चुपचाप से सुला जाती है….
ऐसे समय मे इंसान असहाय हो जाता है….
जीवन मे आने वाली मुसीबतों और
उलझनो का खुली आँखों से ही
शिकार हो जाता है….
इंसान हो जाता है परेशान
ये उजाला क्यूँ अँधेरे की तरफ खींच रहा…..
आशाओं,उम्मीदों,हौसले और सफलता को ये
अँधेरा क्यूँ अपने अंदर भींच रहा…..
सवालों के घेरे मे व्यक्ति राह भटकता जाता है….
अनजानी अनदेखी राहों मे खुली आँखों से ही
भटकता जाता है…..
व्यक्ति की सोच संकुचित होती जाती है…..
कुंठा और अपराध बोध के बीच मे जकड़ती जाती है…..
ऐसे समय मे काम आती है
सकारात्मक सोच….
लेकिन सकारात्मक सोच को झिड़क कर
नकारात्मक सोच अपने को प्रबल करने की कोशिश
मे जुट जाती है…..
ऐसी परिस्थिति मे नकारात्मकता सिर चढ़कर बोलती है…..
अभिमान के लिये चारो तरफ से रास्ते खोलती है…..
ये अहम् अपने साथ ढेरों बुराइयों को लेकर आता है…
इंसान की सोच और व्यहवार को परिवर्तित
करने मे तल्लीनता के साथ जुट जाता है….
बस इसी समय खुद को परखना होता है….
विचारों के तराजू पर नकारात्मक और सकारात्मक सोच
को रखना होता है…
एक बार इंसान ने यदि खुद को परख लिया….
अभिमान के लिये खुले हुए रास्तों को
हमेशा के लिए बंद कर दिया…
सकारात्मकता धीरे-धीरे अपने पांव को जमाती है….
व्यक्ति के व्यक्तित्व को सँवारती जाती है….
हौसला, आशा और उम्मीदों के दिये को
विश्वास के साथ जलाती है…
सकारात्मक सोच के साथ इंसान कर्म की राह पर
अपने हौसले के साथ जुटता है….
देखते ही देखते कुहरे और बादलों से अलग
आकाश मे सफलता का उजाला सजता है…
(चित्र internet के द्वारा )