(11Sep 2016)
“By encouraging the growth and development of our girls we are also spreading positivity”
अपने आँगन की चिड़िया ही तो होती हैं बेटियाँ , कभी चहकती कभी फुदकती, लड़ती, झगड़ती।
अपना आँगन उनको हमेशा प्यारा लगता है ।
लड़की का जन्म लेना आज भी, हमारे देश के कई परिवारों मे अभिशाप माना जाता है ।
अगर लड़की के माता पिता को इस बात से कोई परेशानी नही कि, उनकी संतान लड़की है या लड़का ।
तब भी शुभचिंतक समय समय पर इस बात का बोध कराते रहेंगे कि, केवल लड़की का संतान रूप मे होना बुढ़ापे के लिये दुखदायी होगा ।
वैसे भी हमारे भारतीय समाज मे यह बात बहुत अच्छी तरह से व्याप्त है कि, लड़कियाँ तो परायी होती है ।
उनके प्यार और देखभाल का पूरी तरह से हकदार, उसका शादी के बाद का परिवार ही होता है।
लेकिन अब धीरे-धीरे यह धारणा बदल रही है ।
हमारे समाज में बदलाव आ रहा है ।
मेरे विचार से लड़कियों को तो ज्यादा, प्यार और दुलार से पालना चाहिये ।
क्योंकि आज जो प्यार और दुलार उनको मिलेगा उससे, उनके स्वभाव मे कोमलता आयेगी । वही कोमलता आगे आने वाले समय मे ,समाज और उनके अपने परिवार के लिए बहुत उपयोगी होगी ।
संतान तो संतान होती है ,चाहे वो लड़का हो या लड़की, फिर कैसे लोग कन्या भ्रूण हत्या जैसे पाप मे शामिल हो जाते हैं ।
क्या ऐसे पैरेंट्स के मन मे संतान का कन्या होना ,उनकी सुरक्षा के लिये उनको चिंतित करता होगा या ,दहेज प्रथा जैसी कुरीति का भय उन्हें भ्रूण हत्या के लिये प्रोत्साहित करता होगा ।
आज के समय मे हर पुरुष को ,अपने अंदर झाँकने की जरूरत है।
कुछ दिन पहले की ही तो बात है ।
मेरा सामना एक ऐसे परिवार से हुआ ,जिनके घर मे कन्याओं के जन्म के बाद बेटे का जन्म हुआ ।
सारा परिवार लड़के के दुलार मे इतना व्यस्त था कि ,उन्हें किशोरावस्था मे प्रवेश करती अपनी बेटियों के अंदर उमड़ घुमड़ रहे विचारों का भी पता नही था ।
भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस कर रही लड़कियों को देखकर मै एक बार फिर से कुछ लिखने के लिये मजबूर हो गयी ……
देखा था मैने उसको सिमटते हुये …
सर्दी की सर्द रातों मे सिसकते हुये …
सोच रही थी मै क्या सोच रही होगी वो …
क्या कन्या होना उसके लिये अभिशाप था …
पूछा था मैने उससे क्यों बैठी हो ऐसे शांत सी …
विचारों के भँवर मे क्यों रहती हो अशांत सी …
समझो अपने आप को भगवान का वरदान …
कभी मत समझना अपने आप को अभिशाप …
बेटियों के बिना कोई घर नहीं महकता …
किसी राजा का भी घर नही चहकता …
सारी की सारी भावुकता उन्हीं मे समायी होती है …
आँखो मे हमेशा आतुरता छायी रहती है …
रहता है घर हमेशा प्रफुल्लता से भरपूर …
जाना नही होता है उन्हें अपनी बगिया से दूर …
हर घर मे होना चाहिये बेटियों का सम्मान …
तभी हर कोई बढ़ा सकता है अपना मान …
कन्या होने से कोई शापित नही हो जाता …
रहने से कन्या कोई परिवार अभिशप्त नही हो जाता …
तोड़ना पड़ेगा हमे इस भ्रम को …
छूना पड़ेगा हमें कन्याओं के मन को …
लाना होगा बदलाव हर किसी को अपने व्यवहार में …
करना होगा आगाज सामाजिक बदलाव में …
हमारा भारतीय समाज साल मे दो बार देवी माँ के नौ रूपों की आराधना करता है फिर भी कन्या भ्रूण हत्या जैसी मानसिकता रखता है ।
बेटों की चाह मे ,बेटियों का बलिदान या उनका तिरस्कार उचित नही है ।
बेटियों की निश्छल मुस्कान ,निश्चित तौर पर हर किसी के जीवन मे Positivity ला सकती है।
जरूरत है कोमलता के साथ उन्हें समझने की ।
भारत सरकार के “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ “जैसे अभियान को गति देने की ।
So always be positive friends
( समस्त चित्र internet के सौजन्य से )