(6th Nov 2016)
आप ने देखा है क्या रपटों के ऊपर तेजी से बहता हुआ पानी …..विनाश लेकर आता है Negativity से भरा हुआअगर सजग न रहे तो ….
आपको रपट नहीं मालूम किसे कहते हैं? अरे भाई यह शब्द हमारे ग्रामीण अंचल में पहाड़ी नाले के लिए प्रयोग किया जाता है…
क्षणिक बरसात खत्म,पानी का उतरना भी प्रारंभ हो जाता है….सब कुछ संभव सा लगने लगता है …..जीवन यात्रा सरल व सुगम हो जाती है ….मन positivity से भरकर प्रफुल्लित हो जाता है …..रचनात्मकता को जीवन मे स्थान मिलने लगता है…
वर्तमान समय सोशल मीडिया का है,अपनी सोच विचार और शौक को प्रमुखता से इस प्लेटफॉर्म पर रखने का है।
अपनी मानसिक सोच के अनुरूप, दायरे के साथ घुलने मिलने का है।
लेकिन कभी इस तरह के प्लेटफार्म ,आपकी अपनी सोच को काफी हद तक प्रभावित कर जाते हैं।
सोशल मीडिया के नकारात्मक पक्ष को दिखाते हुए नज़र आते हैं …
ऐ मन ! मिला क्या तुम्हें कुछ अपना सा …
मन ने दिमाग से कहा ! मत ढूंढने देना अकेले मुझे कुछ अपना सा …
धोखा खाने की संभावना प्रबल हो जाती है …..
थोड़ा सा तो सँभालो अपने को , ये फेसबुक की दुनिया है बच्चा !
या तो दिल और दिमाग दोनो को साथ लेकर चलो…
या दोनो को छोड़कर आओ गहरे कुएँ के अंदर …
सुला आओ गहरी नींद मे ,फिर मजा लो इस कल्पनाई दुनिया का …..
कहाँ से खोज कर लायी जाती है विकृत मानसिकता !…..
जिन्दगी भर की भड़ास निकालनी होती है …
काफी मायावी दुनिया होती है …
आप जिसे समझो महिला ! पुरूष के वेश मे होती है वो बृहन्नला …
माँ बाप के लिए दुखदायी घड़ी होती है …
उनके लिये बेटे के माँ बाप होने की खुशकिस्मती पर, एक परछाई सी पड़ी होती है…
कर लो धूप छाँव सी दोस्ती ….
खो दो अपने लोगो को अपने परिवार को ….
खोये रहो मायावी दुनिया मे …
अपने काल्पनिक रिश्तो को संभालने की होड़ मे …..
हमेशा स्टेटस अपडेट करना होता है ….
लोगो के सामने अप टू डेट रहना होता है ….
कितना नकलीपन कितना दिखावा है ….
हम से तो ये न निभ पाया है ….
कितना अच्छा लगता है , जब कोई मित्र सामने से मिलता है ….
उन ठहाको मे जो मजा है , उसके सामने ये फेसबुक न टिकता है….
बाँट लो अपने सुख और दुख आमने-सामने ….
कुछ हो हकीकत तो कुछ हो फसाने….
रे मन कहाँ फँसाया तूने मुझे , तू तो वैसे ही निठल्ला था ….
तुझे तो बिना पंख के भी उड़ने की आदत बुरी है …
भूल जाता है रे मन तू!
बिना पंख के भी आज तक किसी ने उड़ान भरी है ….
आओ कर ले बच्चे जैसे इस मन को …
ढूंढ ले कुछ नटखट पलो को ……
कहाँ उड़ कर मन की ये पतंग चली ….
अरे रुक जा न ऐ मनचली …
थोड़ा सा सँभल कर चलना रे मन ! …
ये आवारा बादलों की दुनिया है दोस्तो …
निरउद्देश्य फिरना जिनका पेशा है दोस्तों …
ऐ मन ,रुक न मन ,बता न मन…….
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