(28 Aug 2016)
कितने लंबे हो गये रास्ते कि, पैरो से छोटी -छोटी दूरियां तय करना मुश्किल ।
महानगरीय सभ्यता और संस्कृति ने, सोचने समझने के दायरे संकुचित कर दिये ।
पगडण्डी क्या होती है , लोगों को नही पता ।
कच्चे रास्तों पर चलना क्या होता है , हमारे बच्चों को नही पता।
हर एक चीज साफ-सुथरी होनी चाहिये ।
रास्ते , घर , माॅल , आॅफिस कहीं पर, धूल का एक कण नहीं होना चाहिए ।
धूल मे अगर पानी मिल गया तो कीचड़ बन गया , वो तो और घृणा का पात्र होता है।
कितना पानी लगता है न कीचड़ साफ करने में, , फिर अगर जिद्दी कीचड़ हुआ, उसमे फूल पत्तियों के सड़े गले अवशेष हुये तो ?
कीचड़ के साथ मिलकर छोड़ जायेंगे दाग! कहाँ से साफ करोगे उसको ।
सब कुछ साफ कर लिया, घर बिल्कुल चमाचम , कपड़े करीने से , चेहरा साफ सुथरा , गाड़ी साफ सुथरी ।
लेकिन एक चीज जो इंसान कभी न साफ कर पाता है , अपना मन ।
जो छल , कपट दिखावे से भरा हुआ, अपने स्वार्थ के अलावा कुछ और नही सोचता ।
हमारी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी मे भी कई छोटी बड़ी चीजें होती हैं , जो हमे काफी कुछ वास्तविकता बताती है ।
मेरे पास एक छोटी सी कार है ।
मेरी अच्छी दोस्त है , वो जब भी मेरे साथ होती है, तब हमदोनो बड़े खुश रहते है ।
जगह-जगह बेचारी को चोट भी लगी हुयी है ,ठीक उसी तरह, जैसे बच्चों के जगह -जगह चोट के निशान होते हैं।
थोड़ी पुरानी है , लेकिन मुझे बहुत प्यारी है ।
कोशिश करती है कि, मेरा साथ हमेशा देती रहे ।
लेकिन बेचारी मौसमी बीमारी की मारी है ।
रोज जाती है , मेरे साथ घूमने ।
अपनी चंचल हेडलाइट से अगल – बगल , देखते हुए।
क्या मोटापे से ग्रस्त गाड़ियाँ अगल-बगल डोलती हैं ।
नाम पूछो तो होण्डा , फारट्यूनर , स्कार्पियो बोलती हैं।
बड़ी नजाकत के साथ चलती है ।
अपने काले शीशों के अंदर, चेहरों को छुपाती है ।
ऐसा लगता है कि, तफरीह का इरादा रखती हैं ।
अपने घरो मे ठौर-ठिकाना नहीं , इसीलिये रास्ते पर दौड़ती है ।
टायर तो ऐसे लगते है , मानो भूसे के बोरे हो ।
इन कारो का इतना मोटापा भी किस काम का , मोटापे के साथ – साथ घमंड भी ढोती है ।
एक दिन बड़े प्यार से मैने अपनी कार को समझाया ,मत कूदा करो गतिअवरोधको पर इतनी जोर से ।
थोड़ी सी उम्र हो गयी है तुम्हारी ,ऑडी समझती हो अपने आप को ।
मेरा इतना कहना था कि Negativity का समावेश हो गया उसमे ।
गुस्सा हो कर बीच चौराहे पर पसर गयी ।
मेरी तरफ से मुँह फेर लिया , अपनी बैटरी को काम करने के लिये मना कर दिया ।
कुछ सभ्य वयक्तियों की सहायता से धक्का खाते हुए, सर्विस लेन का रास्ता लिया।
मुझसे बोली पहले अपने शब्दो को वापस लीजिये आप ! फिर हमारा आपका साथ ।
देखा नही है क्या विंटेज कार रैली ? शर्म आनी चाहिये आपको , मेरे लिये ऐसा सोचते हुये ।
मैने भी सोचा कितने Positive thought है ।
मैने अपने शब्दो को सशर्त वापस लिया ।
फिर अपनी कार से कहा चलो मान जाओ न ,हम चलते है साथ साथ , रास्तो पर ऐसे रूठना अच्छी बात नही है ।
काफी वाचाल है मेरी कार ,एक दिन उसने मुझसे पूछा , आप क्यूँ नही लगवाती कार मे काले शीशे।
मैने बोला जरूरत नही आँखों के आगे कालिमा लगा कर लोगो को देखने की ।
खुला मन और साफ सुथरी नजर काफी है ,लोगो को परखने के लिये ।
सच ही कहा गया है कि, योग्यता और श्रेष्ठता दूसरो मे दोष नही खोजती ।
बल्कि अपने दोषों को तराशती है ।
हमे खुले दिल से अपने दोषों को स्वीकार
करना चाहिये ।
यही बात हमे आत्मसुधार का अवसर देती है । आपकी सोच
Positive हो जाती है ।
फिर जरूरत नही Negativity के काले शीशों के
पीछे छुपने की !
0 comment
Accha hai, kuch lines ko chor kar, ye jaroori nahi ki bari2 gaadi me baithne wale sabhi logo ka mun kaala ho.
Sahi kha aapne apvad hr jagah hote hai
अंतिम चार पंक्तियाँ महत्तवपूर्ण हैं।सकारात्मकता का मतलब दूसरों को ज्ञान देना नहीं बल्कि अपने मन के मैल को साफ करना है।
अपने मन के मैल को साफ करने के बाद दिया गया ज्ञान ही दूसरे के ग्रहण करने के योग्य होता है ।