(चित्र इन्टरनेट से)
हर सुबह एक नयी सोच और विचार के
साथ आती है…….
सकारात्मक सोच प्रकृति के साथ हमेशा
बंद पलकों को नयी सुबह दिखलाती है…….
ग्रीष्म ऋतु की आहट के बीच में भी
भोर की हवा में शीतलता का एहसास होता है……
शायद इसी शीतल हवा के कारण
पेड़ पौधों की पत्तियां भी मंद मंद मुस्कुराती हुई
नज़र आती है……
सुबह की चहल-पहल भी बड़ी शांत सी लगती है……
जीवन की आपाधापी बस कुछ पल दूर खड़ी
नज़र आती है…….
शांत दिमाग, शांत मन धीरे-धीरे विचारों से
प्रभावित होना शुरू होता है…..
क्योंकि हर किसी का जीवन दैनिक दिनचर्या के क्रम में
आगे बढ़ता दिखता है……
भोर में परिंदों का झुंड पंखों को फैलाकर
आकाश में उड़ता नज़र आता है…..
उड़ान उनकी भी बेसब्री वाली नहीं दिखती……
शायद पलकें उनकी अभी भी पूरी तरह से
नींद से नहीं उबरी……
पेड़ की सबसे ऊंची शाख पर कुछ परिंदे
विचारमग्न नज़र आ रहे थे……
फाख्ता के झुण्ड थे वो, जो शायद अपनी बातें
एक दूसरे को बतला रहे थे……
उन्हीं शाखों के ऊपर कोयल भी बैठी नज़र आ रही थी……
अपनी कूक को मधुरता से कूकती जा रही थी…..
समाज का भोर में जागने वाला तबका…….
सुबह की शीतल हवा के साथ
दिन की सकारात्मक शुरुआत करने की कोशिश में
लगा नज़र आता है…..
कहीं योगाभ्यास तो कहीं टहलता हुआ झुंड
नज़र आता है…….
धीरे-धीरे रास्तों पर चहल-पहल बढ़ने लगती है
नन्हे बच्चों से लेकर बड़ों तक की सुबह पूरी तरह से
जागने लगती है……
कंधों पर स्कूल के बस्तों का बोझ उठने लगता है……
शिक्षित होने में जुटा हुआ बाल समाज घरों से बाहर
निकलने लगता है……
(चित्र इन्टरनेट से)
हर सुबह की कहानी जानी पहचानी सी लगती है……
पक्षियों की उड़ान हो,फाख्ता का वार्तालाप हो….
या हो कोयल की मीठी सी कूक……
इन सब के साथ प्रकृति भी सकारात्मक सोच की बात
कहती हुई लगती है…….