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महानगरों की दुनिया से दूर…….
छोटे शहरों या गाँवों मे
दिखता है चारो तरफ सुकून…
इन जगहो पर सुबह
बड़ी जल्दी जाग जाती है…
रात की कालिमा जल्दी से
पता नही किस कोने मे छुप जाती है..
भोर होते ही सूरज मुस्कुराता है….
ज़रा सा अपने आप को बादलों
के पीछे छुपाता है…
देखते ही देखते खिलखिलाता है…
अपनी किरणों को तेजी से
चारों दिशाओं मे बिखेरता जाता है… ..
दूर तक हरियाली ही हरियाली नज़र आती है…
खेतों मे खड़ी फसल
गर्व के साथ मुस्कुराती है…
शाम का धुन्धलका आकाश की तरफ
नज़रों को फेर देता है..
पक्षियों का समूह पंखों को फैलाकर
अपने घोंसलों की
तरफ मुँह को मोड़ लेता है…
तरह तरह की आकृतियाँ आकाश मे घूमते हुए
पक्षियों के समूह बनाते हैं…
घोसलों के पास पहुँचते ही इन आकृतियाँ को
तेजी से बिगाड़ते जाते हैं…
.
सूर्यास्त होते ही ये जगहें
जल्दी से सोने लगती हैं…..
सूर्योदय के साथ संजोयी हुई
ऊर्जा को खोने लगती हैं…
बड़े बड़े वृक्ष शांत हो जाते हैं…
क्योंकि उसमे रहने वाले पक्षी जल्दी से सो जाते हैं….
ध्यान से देखने पर पेड़ों की पत्तियों पर
कुछ हलचल सी दिखी…
ऐसा लगा पेड़ों ने घरों की रोशनी से
मुकाबला करने की ठानी…
पत्तियों के ऊपर ढेर सारी रोशनी की टिमटिमाहट थी…..
जुगनुओं के समूह के वहाँ पर होने की आहट थी….
प्रतिद्वंदिता केवल घरों की रोशनी से ही नही
आकाश के तारों से भी हो रही थी..
छोटे छोटे जुगनुओं को चमकते देख शायद
तारों को जलन हो रही थी…
ऐसा लग रहा था कि तारे रुक रुक कर
जोर जोर से टिमटिमा रहे थे…..
मानो अपनी गुस्से से भरी
आँखें दिखाते हुए जुगनुओं
को डरा रहे थे….
चुपचाप खड़ी होकर
मै यह सब देख रही थी….
चंद्रमा की चंचल किरणों को
जमीन को छूते हुए समेट रही थी….
ध्यान से देखा तो चंद्रमा मुस्कुरा रहा था…..
बोला, मै तो तारों और जुगनुओं की
लड़ाई को देखते देखते
अपनी किरणों को सजा रहा था….
बहुत देर से यही सब देखते हुए
अपने मन को बहला रहा था…
बस इसी कारण से तो मुस्कुरा रहा था….
( समस्त चित्र internet के द्वारा )