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( चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
सच मे बचपन हर गम से ,अंजाना होता है।
सिर्फ माँ के आँचल का ,दीवाना होता है।
बस होना चाहिए ,माँ के आसपास होने का एहसास।
चाहे मँहगी पलंग हो ,या फुटपाथ।
अपने सिर को ऊपर उठा कर, चारो तरफ देख लिया है।
माँ को अपने आसपास होने को ,महसूस किया है।
पड़े हैं फुटपाथ पर ,ऐसे ही नहीं।
सिर के ऊपर छत नही ,तो क्या हुआ ? छाता लगा कर रखा हुआ है।
माँ ने धूप हो या बरसात, सबसे सुरक्षित रखा हुआ है।
देखा था तस्वीरों मे ,समुद्र के किनारे ,कुछ ऐसे ही नजारे।
शरीर को रंग बिरंगे छातों से ही, तो ढकते हैं सारे।
उसी सुख को फुटपाथ पर ,महसूस किया है।
कंकड़ पत्थर और मिट्टी के बीच मे, सरकना सीख रहा हूँ।
मेहनतकश माँ को, पसीने मे डूबता हुआ देख रहा हूँ।
दो जून की रोटी के लिए, ये सारी जद्दोजहद है।
हमारे लिए मखमली बिस्तर नही, यही सड़क है।
आँखों मे विश्वास लिए हुए, चारों तरफ देख रहा हूँ।
गाड़ियों की तीव्र गति के कारण, निकलने वाली हवा
से अपने पसीने को सोख रहा हूँ।
अपनी माँ की आँखों का तारा हूँ।
अब ये मत सोचना कि बेचारा हूँ ।
पाँव और गले मे, काले धागे को पहना हुआ हूँ।
बस इसी कारण से ,बुरी नज़र से बचा हुआ हूँ।
खेलते हुए जब थक जाऊँगा ,जोर से चिल्लाकर
तब माँ को बुलाऊँगा।
माँ के पास आते ही ममता की छाँव मे सो जाऊँगा।
यह सच दिखाता ,जीवन का एक और रूप है।
सच मायने मे जीवन को जीना ,इनके लिए कड़ी धूप है।
व्यक्ति कभी-कभी कितना, मजबूर हो जाता है।
अपने हृदय के टुकड़े को ,फुटपाथ पर सुलाकर
काम मे मसरूफ हो जाता है।
मसला सिर्फ तन को ढँकने का ,और दो जून की रोटी का होता है।
भूखे पेट इंसान क्या जानवर भी नही सो पाता है।
लेकिन फिर भी बचपन हमेशा इस तरह के दुख दर्द से अंजाना होता है।
इसीलिए तो उमंग और उल्लास का पैमाना होता है।