मेरी यह कविता, शहीद हुए जवानों को सर्मपित है
बात बस इतनी सी ही क्यों लगती है ?
शहीदों की शहादत लंबे समय तक
दिलों पर असर क्यों नही छोड़ती है?
शायद ! सच है यह बात
देश प्रेम और शहीदों के प्रति, सम्मान के साथ
देश और समाज मे, मानवता और इंसानियत
सोई हुई सी लगती है ।
सीमा पर खड़े प्रहरी हों
या सुरक्षा की बात के साथ
सामान्य जनमानस ।
हृदय मे करुणा और दया की मशाल
बुझी हुई सी लगती है ।
देश की सुरक्षा मे लगे जवान
शहीद होते हैं तो
हृदय चीत्कार करता है ।
आँखों मे लहू बन कर
अश्रु छलकता है ।
वारदातें होने के बाद , जागता है
सोया हुआ समाज और प्रशासन ।
झुके हुए मस्तक ,और रूंधे हुए स्वरों के साथ
भारी हृदय से ,स्वीकारता है
सुरक्षा मे चूक की बात ।
देश चीख चीख कर उठाता है
जवानों की शहादत की बात ।
निंदाओं के शब्द प्रमुखता से,संचार माध्यमों और
सामाजिक वार्तालाप के माध्यम से
सुनाई पड़ जाते हैं ।
जवानों के परिवार
रोते बिलखते दिख जाते हैं ।
कब तक सजेगा
छल,धोखे और विश्वासघात के साथ
सजा हुआ,आतंकवाद का बाजार ।
नफरत की रोपी हुई फसल
आतंकवाद को सामने लेकर आती है ।
मासूम से दिखने वाले चेहरों के पीछे, नफरत!
फलती फूलती दिख जाती है ।
शहीदों की शहादत के समय
क्यों भूल जाता है
विश्व का मानस पटल !
विश्व शांति के साथ
इंसानियत और मानवता की बात ?