( चित्र दैनिक जागरण से )
सत्ता की लोलुपता और राजनीति का प्रभाव…..
वोटरो को प्रभावित करने की कोशिश मे…..
तरह तरह के छल और छद्म से भरा हुआ नेतागणों
का व्यहवार….
नेताओं की पकड़, सामाजिक समस्याओं और
देश की प्रगति से परे हो गयी…..
ये राजनीति है ज़नाब ……
जो इंसानियत और मानवता को पीछे छोड़कर …..
समाज मे चहुंओर खड़ी हो गयी …..
ध्यान से राजनीतिज्ञों को, देखो तो राजनीति….
किसी एक दल या परिवार की, निजी संपत्ति हो गयी…..
अपवादो को छोड़ दो तो….
वर्तमान मे राजनीतिज्ञों की सबसे बड़ी पहचान…
उजला सा परिधान,अवसरवादिता की तलाश….
लेकिन मन की बात का,किसी भी कोने से
पा न सके,कोई भी थाह…
हर समय राजनीतिक तिकड़मों के साथ
उठापटक का ख्याल …..
समझ मे नही आता कभी-कभी ….
कैसे! इतनी तिकड़मों के बीच मे
सहज तरीके से, जीवन को जी सकता है इंसान……
आपसी वैमनस्ययता और विरोध के स्वर
इतने प्रबल हो चले कि….
देश के विकास के लिये चलने वाले,संसद के सत्र
निरस्त होते दिखे….
विरोधाभासी विचार के साथ….
सहमति और असहमति की बात….
हमेशा विकास के लिए जरूरी होती है….
लेकिन पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह से ग्रस्त, राजनेताओं के लिए ….
स्वस्थ वातावरण की बात….
आँखों की किरकिरी होती है….
सत्ता का संघर्ष और लोलुपता की बात…..
ये नही है सिर्फ, वर्तमान की कहानी…
राजनीति का इतिहास पढ़ो तो…
वर्तमान एक दूसरे की टांग खींचने मे
जुटा दिखता….
भूतकाल इसतरह की बातों को
आइने के समान दिखाता….
भविष्य काल का, किसी को भी
नही कोई ज्ञान….
राजनीतिक गलियारों की उठापटक मे….
देश और समाज, अनजान सी राहों मे खड़ा दिखता….
समाज का पिछड़ा वर्ग…
कृतज्ञता के भाव के साथ
खड़ा दिखता…..
अहम् की प्रतिमूर्ति, और चाटुकारिता से भरा हुआ नेता….
समाज के पिछड़े वर्ग को
सिर्फ और सिर्फ वोट लेने के दौरान ही
समझता और बूझता दिखता….
तमाम तरह के वादों और प्रलोभन के बीच में
सामान्य जनता ,उलझती हुयी सी दिखती….
यह राजनीति के गलियारो की बात है ज़नाब ….
जहाँ स्वार्थ की रोटी, यूं ही सिकती हुई नही दिखती……
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बिल्कुल सही लिखा और अखबार में सुंदर कटाक्ष।👌👌
धन्यवाद 😊