अचानक से दिमाग मे आया
बेतुका सा एक ख्याल….
अपने साथ लेकर आ गया
दस तरह के सवाल….
उन सवालों के जवाब में मै
मानसिक रूप से हो ली…..
अपने सफर के साथी……
कागज और कलम को भी
साथ मे ले ली…..
सोचने लगी मै…..
हमारी सोच और समझ का दायरा भी…
कभी-कभी कितना विस्तृत…..
तो कभी कितना संकुचित हो जाता है…..
अपनी ही उपयोगिता और,अनुपयोगिता पर….
तमाम सवाल छोड़ जाता है……
कभी कवितायें लिखवाता है…..
तो कभी कहानियां लिखवाता है….
कल हो गयी, बड़ी अजीब सी बात…..
नदी,पहाड़,पेड़ पौधों का
नहीं था साथ…..
दिमाग और पारलौकिक जगत् का था साथ…
सारी दृश्य और अदृश्य,आत्माओं के बीच मे
हलचल मची हुई थी……
कोई स्वागत के अंदाज से निहार रही थीं……
कोई तिरछी नज़रों से ही हमे ताक रही थीं….
किसी के चेहरे पर छल का भाव था…..
कोई पश्चाताप के साथ था….
कोई कृतज्ञता के भाव के साथ था…..
कोई अभी भी,धोखा देने के फिराक मे था…
किसी ने खुशनुमा अंदाज़ मे, हमसे सवाल पूछा….
आपको हमारे बीच मे, कविता लिखने या सुनाने का
ख्याल कैसे जागा….
वैसे आप शायद, इस बात से रूबरू नही हैं….
हम अपने पारलौकिक जगत का माहौल भी
सद्भावना पूर्ण रखते हैं….
समय समय पर, पृथ्वी लोक को छोड़कर आ चुके….
कवियों,गीतकारों और शायरों को……
अपने कवि सम्मेलन जैसे आयोजनों मे
आमंत्रित करते रहते हैं….
अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है….
महान कवि और गीतकार हमारे साथ थे…..
उनकी कविताओं,गीतों,भजनों के बोल
हमारी जुबाँ पर थे……
वीर रस,भक्ति रस,करुणा, दया और प्यार का भाव….
पारलौकिक जगत् के भी साथ था…..
हमारे संसार को भी उन्होंने, अपने दिव्य प्रकाश से
आलोकित कर दिया था…..
हमने उन्हें यहां से, स्वर्ग पथ पर जाने के लिए
सरल और सुगम रास्ता दिया था…..
“जहां न पहुंचे रवि,वहां पहुंचे कवि”वाली बात को
लौकिक जगत् भी समझता है…….
फिर क्यों अपने अस्तित्व की तलाश मे
कवि लौकिक जगत् मे भटकता है……
फिल्मी संगीत और, पाश्चात्य संगीत के दौर मे
कवि सम्मेलन जैसे आयोजन,ज़रा कम ही नज़र आते हैं…..
गीतकारों और कवियों की लिखी पंक्तियों पर…..
लोगों के पांव थिरकते, और जुबान गुनगुनाती है…..
लेकिन फिर भी कवियों, शायरों और गीतकारों की पहचान
अपने अस्तित्व को, तलाशती हुई नज़र आती है…..