ये हमारे दिल्ली शहर के मौसम की कहानी है…..
बात सिर्फ दो दिन ही तो पुरानी है….
मौसम ने अचानक से करवट बदला….
सारा शहर मौसम के बदलाव के कारण
बदहवास हो कर कुछ समय के लिए ठहरा….
भोर की किरणों के साथ ही सुबह ज़रा सी
बदली बदली सी नज़र आ रही थी…..
उस दिन की बातों को अपने ही अंदाज में
बयां करती जा रही थी…..
बीते हुए कल में आकाश में छुट पुट से
काले बादलों का डेरा था…..
लालिमा से सजे हुए दिनकर को सुबह से ही
काले बादलों ने घेरा था…..
ये काले बादल ढीठ नज़र आ रहे थे
कभी सूरज को छिपा रहे थे…..
तो कभी खुद को सूरज से दूर हटा रहे थे…..
आती हुई ग्रीष्म ऋतु की गर्म हवा में
धूल की महक थी……
धूल मिट्टी की भी अजीब सी सनक थी….
बादलों की कालिमा और धूल मिट्टी के साथ
अंधड़ ने रोशनी को छुपा लिया…..
तेज हवा के साथ धूल और मिट्टी ने खुद को धरा से
ऊपर उठा लिया……
तेज हवाओं और बादलों ने दिन में ही
रात का एहसास दिला दिया……
बादलों का गरजना और बिजली का तड़कना
अपने चरम पर था…..
परिंदों को भी दिन में ही रात होने का भ्रम था….
दखते ही देखते वृक्ष की शाखाएं झूमने लगी….
तीव्र हवा के प्रकोप को रोकने के संघर्ष में
नृत्य करती हुई दिखी……
वृक्षों को देखने पर उनमें चैतन्यता दिख रही थी……
तेज हवा और पानी की बूंदों से
शाखाओं और पत्तियों की खूबसूरती निखर रही थी…..
बादलों की कालिमा ने आंधी-तूफान के साथ
बारिश की बूंदों का रूप धर लिया……
गीली मिट्टी की सोंधी सी महक ने
मन को हर्ष से भर दिया……
बवंडर के रूप में उठी धूल और मिट्टी को
बूंदों ने वापस धरा पर पहुंचा दिया…..
नयी सुबह के साथ जगह जगह पत्तियों और टहनियों
के अवशेष दिख रहे थे…..
तेज आंधी और तूफान के साथ संघर्ष की बात को
कहते लग रहे थे…..
मंद मंद हवा शीतलता के साथ बह रही थी…..
जीव जंतुओं के अंदर उमंग और उत्साह भर रही थी…..
पक्षियों की चहचहाहट मधुर संगीत का बोध
करा रही थी…..
जानवरों के बच्चों को भी उछल-कूद करने
पर मजबूर कर रही थी…..
भीगी हुई रेत का ढेर ही उनका बिछौना
और उनका खिलौना था…..
पंजों से रेत को उड़ाना और दौड़ना भागना था…..
ग्रीष्म ऋतु में भी आकाश से दिवाकर अपनी
शीतलता दिखा रहा था…..
ऐसा लग रहा था मानो धरा पर दिखने वाले
हर्ष और उल्लास को देखकर खुद को भी हर्षित
करता जा रहा था…….
( सभी चित्र इन्टरनेट से)
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Ye bhut hi sundar h… 👏👏
Thanks 😊