आते ही ऋतु बसंत की छा गया
चारो तरफ उल्लास….
देखते ही देखते आकाश मे
काली घटायें छा गयी….
सर्दियों के मौसम मे भी
शुरू हो गयी बरसात…..
दे दिया प्रकृति ने बारिश की
बूँदों का उपहार….
फसलों के लिये उपयोगी होती है
बेमौसम की ये सौगात…..
रिमझिम बारिश की बूँदों ने सर्दी बढ़ायी…..
ऐसा लगा बोल रही हो “हमने सर्द मौसम मे
बरसकर धरा के प्रति
अपनी वफादारी निभायी”….
उधर वृन्दावन मे रंग और गुलाल की
बरसात हो रही थी…..
सरसों और गेंदें के फूलों के साथ-साथ
बसंती रंगों के परिधानों के साथ
वृन्दावन नगरी सज रही थी…..
भक्तगण बाँके बिहारी जी के सामने
मधुर गीत गा रहे थे….
मधुर गीत और छप्पन भोग के माध्यम से ही
बाँके बिहारी जी को रिझा रहे थे…
चारो तरफ बाँके बिहारी लाल की
जय जयकार हो रही थी….
इसी के साथ ब्रजभूमि आस्था और आध्यात्म
के रंगों के साथ सज रही थी……
भक्ति और उत्साह की भावना
भक्तगणों के अंदर जोश भर रही थी…..
चारों तरफ सिर्फ होली महोत्सव की
धूम मच रही थी…..
स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान
ठाकुर जी मुस्कुरा रहे थे…
अपने परिधानों को भी
बसंती रंगों से ही सजा रहे थे…
ऐसा लगा कि कुछ बोल रहे हों….
मंद मंद मुस्कान के साथ
शब्दों के पट को खोल रहे हों…
“जीवन को हमेशा सकारात्मकता के साथ
उत्साह से जियो”…..
“मार्ग मे आने वाली कठिनाईयों के समय मे भी
मेरे ऊपर विश्वास तो रखो”……
“विराजता हूँ प्रकृति के हर कण मे”…..
“सच्चे मन से किये हुये हर एक कर्म मे”…..
“चाहो तो स्वर्ण सिंहासन पर बिठा दो….”
“घरों के मंदिर मे सजा दो”……
“या मेरे मानस रूप को ही अपने ध्यान मे सजा लो”…..
( सभी चित्र internet के द्वारा )