आ ही गया दिन वसंत पंचमी का
माँ सरस्वती की आराधना और स्तुति का
खिलखिला रहे हैं खेतों मे वसंती फूल
सर्द मौसम की विषमता को गये हैं लोग भूल
हर तरफ दिख रहा है माँ बुद्धिदात्री का प्रभाव
मैने भी श्रद्धा के साथ माँ के चरणों मे
अर्पित किये अपने भाव
करती हूं तुमको नमन माँ शारदा !
तुम ही तो कराती हो विचारों को
अलग-अलग विधाओं मे गमन
करती हूँ हमेशा तुम्हारा मनन
बंद हो आँखें या हो खुली
तुम्हीं ने बदला विचारों को शब्दों के
संसार मे माँ !
करती हूँ तुमको नमन माँ शारदा!
रखा है हमेशा तुमने सच्चे मन से की हुई
आराधना का मान माँ !
इच्छा तो मेरी भी है चढ़ाऊँ मै भी
बड़े बड़े फूलों के हार माँ !
लेकिन अर्पण करती हूँ हमेशा
शब्दों से गुथे हुये हार माँ!
करती हूँ तुमको नमन माँ श्वेतधारणी !
देती हो शब्द कभी तल्ख, कभी मधुर
तो कभी जीवन की जरूरतों से सजे हुये
विचारों की विविधता को देने मे
क्या रहता है तुम्हारा मंतव्य माँ !
कभी रखती हो मन को फूलों सा हल्का
कभी करती हो मनो भारी
कभी कराती हो मन से भागादौड़ी
कभी कराती हो कामचोरी
अब बताओ, यहाँ पर क्या समझूँ
तुम्हारा इरादा माँ !
जो भी हो रखती हो हमेशा
छल,कपट,घृणा,द्वेष से परे माँ !
करती हूँ तुमसे विनम्र निवेदन
देना हमेशा सकारात्मक विचारों के साथ
नम्रता और आत्मसम्मान
करती हूँ तुमको नमन माँ शारदा!
रखना हमेशा अपने स्नेह की छाँव मे माँ !
मत हटाना कभी भाल से अपना हाथ माँ !
हमेशा विराजना मन मंदिर के द्वार माँ !
इसी विश्वास के साथ
करती हूँ तुमको नमन माँ बुद्धिदात्री !
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