( चित्र internet के द्वारा )
दिल्ली शहर मे रहते हुये अगर आप कुछ लिखने या किताबों को पढ़ने का शौक रखते हैं तो “विश्व पुस्तक मेला”मे जाना तो बनता है। यही सोचकर मैने भी बुद्धवार का दिन “विश्व पुस्तक मेला” मे जाने के लिये उपयुक्त समझा।
अगर आप भी किताबों का शौक रखते हैं तो, सोमवार से लेकर शुक्रवार तक का कोई दिन इस तरह की जगहों पर जाने के लिए मिलता हो ,तभी शनिवार और इतवार की भीड़ से बचा जा सकता है।
इंटरनेट पर उपलब्ध तमाम तरह की किताबों के इस दौर मे “विश्व पुस्तक मेला” मे भीड़ दिखना ज़रा सा आश्चर्य मे डाल देता है।अचानक से आये ई-बुक के इस दौर मे कुछ मोटी,छोटी,लंबी या पतली सी किताबों के साथ खुद को व्यस्त रखते हुये कोने कोने मे बैठ कर पढ़ने के युग की अभी समाप्ति नही हुयी है।इस बात का अनुभव मुझे विश्व पुस्तक मेला मे जाकर हुआ।
(चित्र internet के द्वारा )
वैसे तो कुछ अच्छा पढ़ने की तरफ का झुकाव हमेशा पुस्तक मेले की तरफ खींच ले जाता है।
वहाँ पहुँच कर क्या खरीदे क्या छोड़े जैसे असमंजस वाले भाव के साथ मन उलझ जाता है।
इस तरह के मनोभावों के साथ भीड़ मे तमाम लोग दिख रहे थे।
बच्चों का उत्साह कहीं किताबों के आकर्षक रंगों के साथ दिख रहा था,तो कहीं हाथों मे किताब लेकर कोई बच्चा चहक रहा था, तो कोई जिद्द मे पड़ कर के बिलख रहा था।
कई बच्चे तो किताबें खरीदने की जिम्मेदारी ,अपने अभिवावकों के ऊपर छोड़ कर किसी कोने मे मोबाइल मे व्यस्त नज़र आ रहे थे।वहीं दूसरी तरफ बिल्कुल छोटे बच्चे किताबों के ढेर के बीच मे बार बार खो जा रहे थे और उनके अभिवावक दौड़ते भागते नज़र आ रहे थे।
(चित्र दैनिक जागरण से)
साहित्यिक पुस्तकों के साथ-साथ व्यक्तित्व विकास,तनाव प्रबंधन, योग,अध्यात्म, स्वास्थय, धर्म के अलावा अन्य विषयों की पुस्तकें भी दिख रही थी ।
सुदूर देशों की संस्कृति से रूबरू कराती हुयी पुस्तकें विदेशी मंडप मे दिखायी दे रही थी।
इसमे तीन शार्क देशों नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान की किताबें मुख्य रूप से आकर्षित कर रही थी।ये किताबें इन देशों की संस्कृति ,पर्यटन,साहित्य के साथ उन देशों के जीवन और विचारधारा की तरफ ध्यान खींच रही थी
हर एक हाल मे नयी प्रकाशित किताबों के लेखकों के साथ उनकी विषय वस्तु पर परिचर्चा भी हो रही थी।इस बार के पुस्तक मेले की थीम “पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन” के ऊपर है।उसके अनुसार हाल नंबर सात को थीम मंडप के रूप मे बड़े आकर्षक तरीके से सजाया गया है ।
मेरा खुद भी प्रकृति के साथ लगाव होने के कारण इस तरह की विषयवस्तु अपनी तरफ खींचती हैं।काफी समय हमने थीम मंडप मे बिताया ।भारतीय सभ्यता और संस्कृति को चित्रों के माध्यम से दीवारों पर दर्शाया गया था ।कहीं जंगली जानवर स्वच्छंद तरीके से घूमते और मुस्कुराते हुए नज़र आ रहे थे,तो कहीं ग्रामीण महिलाओं के घर गृहस्थी के काम दीवार पर नज़र आ रहे थे।
बीच मे घूमता हुआ नीले रंग का विशाल ग्लोब पृथ्वी को दर्शा रहा था धीमे धीमे घूमता हुआ अपनी तरफ देखने पर मजबूर करता जा रहा था।थोड़ी देर तक उस ग्लोब को देखते हुए जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के बारे मे सोचते हुए मै प्रकृति के करीब पहुँच गयी और पृथ्वी की व्यथा को ध्यान से सुनने लगी…..
धरा पर विचरते विवेकशील और बुद्धिमान इंसानों
ज़रा पर्यावरण और जलवायु का भी ध्यान धरो…..
विकास के इस दौर मे इतने भी
बेरहम न बनो….
नष्ट कर के प्राकृतिक संसाधनो को
बावली,जोहड़ और तालाबों को
चारो तरफ खड़ा किया है ,कंक्रीट के जंगलों को…..
कर के दोहन भूमिगत जल का
कर दिया है जमीनों को बंजर,अब और तो इस
पर्यावरण को मत छलो…..
कितनी नि:स्वार्थ पृथ्वी की उदारता है…..
बोलती कुछ नही लेकिन देखती हर जीव मे समानता है…..
आखिर क्यूँ समझ मे नही आती इंसानों को
पर्यावरण की उपयोगिता …..
बिन हवा, बिन जल,बिन अन्न कौन सा जीवन
जीवित बचेगा कल…..
कम से कम एक बार तो पर्यावरण को
अपने जीवन से जोड़ो……
निकल कर शहरों की आबोहवा से बाहर
पेड़ पौधों और पहाड़ों से तो गले मिलो….
कम से कम अब तो जाग जाओ….
आगे बढ़ कर प्राकृतिक संसाधनो को तो बचाओ……
थीम मंडप से बाहर निकलते समय मै प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ चुकी थी, तीन या चार घंटे से लगातार चलते हुये थकान मिटाने के लिये एक जगह बैठकर काफी पीकर आगे बढ़ चले ।सामने लगी हुयी बड़ी सी एल ई डी स्क्रीन पर सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति होते हुए दिख रही थी।
डाॅ सोनल मानसिंह के द्वारा थीम मंडप मे कही गयी एक बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया कि मै ई बुक नही पढ़ती मुझे हाथ मे असली पुस्तक लेकर पढ़ना पसंद है।वर्तमान समय मे शायद ये बात टेक्नोलॉजी पसंद लोगों को सही न लगे ,लेकिन सोचिये अगर लोगों का हाथों मे किताबें लेकर पढ़ना बंद हो जायेगा तो विश्व पुस्तक मेला जैसे आयोजनों का कोई औचित्य ही नही रह जायेगा …
( चित्र internet के द्वारा )
धीरे-धीरे हमने अपने आप को मेट्रो स्टेशन के रास्ते पर मोड़ लिया।ज़रा सा आगे बढ़ते ही फुटपाथ पर सजा हुआ किताबों का बाजार दिख गया।”विश्व पुस्तक मेला”से निकलते हुये कुछ लोगों ने वहाँ से भी खरीददारी की।
नयी-नयी किताबों की खुशबू और आकर्षक मूख पृष्ठ और थीम मंडप की सजावट मेरी आँखों के सामने घूम रही थी और हम मेट्रो के साथ अपने घर की राह पर बढ़ चले …….