बड़े दिनो के बाद देखने को मिला
कठपुतलियों का खेल……
देखकर निर्जीव कठपुतलियों का
जीवन की कहानियों से मेल…..
हर कोई अपने मन को हर्षा रहा था….
मनोरंजन के पलों मे खुद को
डुबोता जा रहा था…..
रंग बिरंगे परिधानों और तरह तरह की
भावभंगिमा वाले भावों से
कठपुतलियाँ सजी हुई थी…..
बस एक डोर से नचाने वाले के हाथों
से जुड़ी हुई थी…..
हर कठपुतली अपना अलग अलग
किरदार निभा रही थी…..
नृत्य संगीत के संवादों के द्वारा अपने भावों को
सजीवता के साथ दर्शा रही थी….
देखते हुए कठपुतलियों का खेल
मन सोच मे पड़ गया…..
जीवन भी तो है काठ की पुतली….
हर कोई है ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली….
कभी देखता है आँखें बंद कर के…..
कभी तीक्ष्ण नजरों से…..
सुख और विलासिता के समुंदर मे तैरता हुआ जीवन….
सोचता है वो बनाता है इंसानों को कठपुतली….
कभी-कभी इस नादानी पर ईश्वर भी मुस्कुराता है….
शायद जीव पल भर के लिये यह भूल जाता है….
ऊपर बैठा हुआ ईश्वर डोर खींचता जाता है….
कपपुतली समझकर नचाने वालों को अपनी मर्जी
पर लय और ताल के साथ नचाता जाता है…..
अचानक से गूंज उठी कानों मे संवादों
के साथ शौर्य गाथा…..
संगीत का स्वर कहीं उच्च तो कहीं
मध्यम हो रहा था….
कठपुतली नृत्य के गीत और संवाद……
मुख्य तौर पर पौराणिक या ऐतिहासिक कहानियों
से जुड़े हुए होते हैं…..
खेल खेल मे ही इंसान अपनी सभ्यता और
संस्कृति से रूबरू होते हैं….
आजकल कठपुतलियों के खेल के माध्यम से
अनेक समस्यायें समाज के सामने लायी जाती हैं…..
इसके जरिए सोते हुए समाज को जगाने की
चेष्टा की जाती है….
सच मे हमारा देश कितनी अद्भुत कलाओं का खजाना है….
कठपुतली नृत्य का सिर्फ हमारे देश मे ही नही
विदेशों मे भी ठिकाना है….
(चित्र internet के द्वारा )