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हम सभी को चाहिये होते हैं
उत्सव मनाने के बहाने….
आपस मे मेलजोल बढ़ाने के लिये
चाहिये होते हैं फसाने….
बदलते हुए मौसम के साथ त्योहार
तो आते जाते रहते हैं…..
शुभ मुहूर्त के साथ शादी ब्याह के
अलावा संस्कार भी होते रहते हैं….
कुछ भी हो इस तरह के आयोजन
परिवार और समाज को एक सूत्र मे
पिरोने का काम करते हैं….
इसी बहाने लोग आपस मे मिलकर
सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करते हैं….
कुछ समय पहले की ही तो बात थी…
इसी तरह के आयोजन मे मै भी
आमंत्रित थी…..
तमाम तरह के रीति रिवाजों और पूजा पाठ
की विधाओं मे सम्मिलित थी….
मंत्रोच्चार से सारा वातावरण गूंज रहा था…..
शादी ब्याह के माहौल से सजा हुआ परिसर
बड़ा आकर्षक लग रहा था…..
सब के चेहरे पर था उत्सव का उल्लास….
चारो तरफ बिखरा हुआ था ,तरह तरह के
के खाने का स्वाद…..
किसी जरूरत से एक कमरे मे दाखिल हुई…..
जोर-जोर से लड़ाई की आवाज के साथ
फुसफुसाहट से भी रूबरू हुई…..
था वो खाने के सामान का भंडार गृह…..
जगह जगह रखे हुए थे मिठाई के थाल
और प्रसाद के डाल…..
उन्हीं के बीच मे सजी हुई थी बोतलों मे
भरी हुई शराब……
मिठाईयाँ और प्रसाद उन बोतलों से
लड़ और झगड़ रहे थे…..
चिल्लाकर बोल रहे थे क्या जरूरत है…..
तुम्हें इस तरह के शुभ आयोजनों मे आने की…..
क्या जरूरत है खुद को मिठाईयों और
प्रसाद के बीच मे सजाने की…..
तुम्हे पता है तुम्हारे कारण कितने
घर बर्बाद हुए हैं…..
कितने लोग असाध्य बीमारियों के
शिकार हुए हैं…..
शराब की बोतलों ने कुटिल मुस्कान
से अपने चेहरे को सजाया…..
अंगद की तरह अपने पैरों को आगे बढ़ाया…..
अपनी ढीठता को दिखाया…..
बोली हमे यहाँ से हटा सको तो हटा कर दिखाओ…..
उठा सको तो उठा कर दिखाओ….
हम लोगों की जरूरत बन चुके हैं…..
आदतों मे शुमार हो चुके हैं….
लोगों के खून मे मिलकर आबाद हो चुके हैं…..
इंसान अच्छा खाना खाये या न खाये….
प्रसाद को अपनाये या न अपनाये…..
हमारे कड़वे घूंट को बड़ी मासूमियत से निगलता है…..
धुँए के छल्ले को सुकून के साथ उगलता है…..
इस तरह के आयोजन का हम महत्वपूर्ण अंग हो चले…..
अधिकांश लोग तुमसे मिले बिना हमारे संग हो चले….
गजब के घमंड के साथ शराब की बोतलें बोल रही थी…..
मिठाईयों को अपनी अकड़ मे कस कर जकड़ रही थी…..
गुस्से मे बोलीअपने उपदेशों को बंद करो….
अब हमे मत तंग करो….
अभी तो हम तुम्हें अकेले दिख रहे हैं…..
सिगरेट अफीम चरस और न जाने कितनी तरह
की नशीली चीजों को अपने संग लेकर चल रहे हैं…..
जहाँ भी अपना पाँव पसारते हैं….
लंबा साथ निभाते हैं इंसान को
खोखला करने के बाद ही
अपने पांव को पीछे हटाते हैं……
चुपचाप खड़ी होकर मै उनकी बातों को
सुन और गुन रही थी…..
संस्कार और परंपरा से दिखावे और आधुनिकता
की इस लड़ाई मे….
दिखावे और आधुनिकता को संस्कार और परंपरा का
धीरे धीरे गला घोंटते हुए देख रही थी ……
( समस्त चित्र internet के द्वारा )