सजे धजे बाज़ार भी रौनक से भरे होते हैं….
तरह तरह के सामानों से हरे भरे रहते हैं….
सड़क के किनारे लगे रहते हैं तरह तरह के ठेले….
बस इसी कारण से बाज़ार मे लगे रहते हैं हर समय मेले….
तरह तरह के सामानों से दुकानें सजी….
हर दुकान मन को जँची..
खाने-पीने की दुकानों के सामने से तरह तरह के
स्वाद की खुशबू उड़ती…
बस वही खुशबू जर्बजस्ती लोगों को अपने
जाल मे जकड़ कर पकड़ती…..
तरह तरह के व्यंजनों का स्वाद लेते हुए लोगों
के चेहरे पर संतोष के भाव दिखते….
ऐसा लगता मानो कह रहे हो
आप भी आकर आखिर कतार मे क्यूँ नही लगते….
जमाने को तो सिर्फ तंदरुस्ती को मोटापा कहने
का बहाना चाहिए…
आखिर जीभ को भी तो इतना बोलने के बाद
स्वादिष्ट खाना चाहिए…..
ज्यादा सख्ती करने से जीभ अपनी अकड़ दिखायेगी….
पता नही कब कड़वे शब्द उगल जायेगी….
बाज़ार की सैर को अगला ठौर मिला….
बस वहीं से कपड़ों के बाज़ार का दौर शुरू हुआ….
रंगबिरंगे सुन्दर सुन्दर कपड़े नज़र आ रहे थे….
हर दूसरे कपड़े मन को भा रहे थे…..
कूदते फाँदते हुए कपड़े हमारे पास आ रहे थे….
बस, अब आप हमे साथ मे ले चलिये…
क्योंकि हमे आप और आपको हम बहुत भा गये….
इसीलिये तो भागते हुए आपके पास आ गये…
ज़रा सा आगे बढ़ते ही फलों की दुकान सजी दिखी….
हमे देख कर बड़ी जोर से हँसी….
चटोरी जीभ वालों को हम दूर से ही पहचान लेते हैं…
क्योंकि हमारे पास आते ही ऐसे लोग अपनी आँखों
को चुरा लेते हैं…
सबसे ज्यादा शरीर को हमारा ही काम होता है….
बस इसी बात का गुमान हमे हमेशा होता है….
इसीलिये सिर उठा कर अकड़ मे खड़े रहते हैं…
कोई टिक्की गोलगप्पे नही कि तवे पर तले या
चटपटे पानी से भरे होते हैं….
कुछ नही तो नारियल पानी को ही पीकर जाइये…..
इस पसीने से डुबोती हुयी गर्मी मे अपने शरीर को
खनिज और लवण का साथ तो देती जाइये…..
बस अब पूरी हो गयी हमारी खरीददारी…..
फलों के ठेलों ने समझा दी हमे दुनियादारी….
ज़रा सी आत्मग्लानि के साथ हम अपने रास्ते हो लिये…
एक बार फिर से कुछ ऊटपटांग न खाने के प्रण के साथ हो लिये…..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )
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