सच कहो तो,
मेघों और बूँदों की ही तो बात है
“सावन मास”
प्रकृति के उत्सव का,उल्लास ही तो है
“सावन मास”
चटपटे खाने का लेना हो स्वाद….
मिठाईयों मे घेवर की हो बात….
बरसात की बूँदों के साथ…
चाय और पकौड़े का हो साथ…
जीभ के ,चटोरेपन के साथ ही तो है
“सावन मास”
कवियों और लेखकों की, कलम से निकली
आवाज ही तो है,”सावन मास”
प्रकृति भी सावन मास मे अपने
मस्तमौला अंदाज़ मे दिखी….
देखते ही देखते धरा ने ,धानी चुनर ओढ़ ली….
धान के कोमल पौधे पनपने लगे….
धरा को धानी रंग से, रंगते हुए लगे….
अवनि से अंबर तक सतरंगी रंगों की
छटा बिखरी…..
सूर्य की किरणें,जब बारिश की बूँदों के बीच मे से निकली….
मिट्टी की सोंधी सी महक….
सारे वातावरण मे,धरा की खुशी को बता रही थी…..
बारिश के पानी से बने छोटे छोटे तालाबों मे…..
कागज की कश्ती, तैरती हुई नज़र आ रही थी…..
ऐसा लग रहा था मानो…..
प्रकृति ने अपना मधुर राग छेड़ा हो….
उसी राग को सुनकर मयूर थिरका हो….
बारिश की बूँदों ने कभी तीव्र …..
तो कभी मद्धिम आवाज के साथ……
कहीं कजरी तो,कहीं राग मल्हार छेड़ा हो…..
हर्ष और उल्लास को दिखाते हुए झूले…..
हर उम्र के लोगों को ललचाते हैं…..
मेंहदी से रचे हुए हाथ, तीज त्योहार के
पास आने की बातें, कहते जाते हैं…..
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार….
प्रकृति का यह अनुराग….
भगवान शिव को भी भाता है…..
इसी कारण से हिमालय को छोड़कर……
शिव जी को,जनमानस का साथ भाता है……
झूमता हुआ सावन…..
मधुर लोकगीतों को गुनगुनाता है…..
प्रकृति का नव सृजन चारों दिशाओं मे
नज़र आता है…….
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Bahut shandar
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