प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर दक्षिण भारत,प्राचीन संस्कृति और कला से संबंधित अनेक धरोहरों को,अपने आंचल में समेट कर रखा हुआ सा प्रतीत होता है….
भारतीय सभ्यता और संस्कृति को,धरोहर के रूप में समेटे हुए शहरों की कड़ी में तमिलनाडु का तंजावुर या तंजौर शहर, बिना बोले ही…. अपनी भव्यता और कलात्मकता की बात को बोल जाता है….
कावेरी नदी के उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण यह दक्षिण भारत में चावल का कटोरा
कहलाता है….
मिट्टी से बनी हुई गुड़ियों का प्रचलन दक्षिण भारत के हर शहर में दिखता है, लेकिन इन मिट्टी की गुड़ियों का उद्गम स्थल तंजावुर ही रहा है….. बदलते हुए समाज के साथ गुड़ियों की साज सज्जा में भी बदलाव आया है….
चोल वंश ने 400वर्ष से अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया….इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की, इसके बाद नायक और मराठों का शासन हुआ वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे…..
कला के प्रति इन शासकों का लगाव आज भी उनके द्वारा बनवाई गई इमारतों में खूबसूरती के साथ झलकता है……
तंजावुर की बात बिना तंजौर चित्रकला के अधूरी सी लगती है…..
तंजौर चित्रकारी का विषय मूलतः पौराणिक ही रहा है,ये धार्मिक चित्र दर्शाते हैं कि आध्यात्मिकता रचनात्मक कार्यों का सार है……
या सरल शब्दों में हम ये भी कह सकते हैं कि, तंजौर चित्रकला लोककला और कहानी किस्से
सुनाने की विस्मृत कला से जुड़ी हुई है,ये पारंपरिक कला का ही रूप है…..
इस कला ने भारत को विश्व मंच पर प्रसिद्धि दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है…..
इस कला की विषयवस्तु हिन्दू देवी देवताओं से प्रेरित है….
श्रीकृष्ण इनके प्रिय देव हैं, जिनके विभिन्न मुद्राओं में बने हुए चित्र दिखते हैं,जो जीवन की विभिन्न अवस्थाओं को दिखाते हैं…..
तंजौर चित्रकारी की मुख्य विशेषता उनकी बेहतरीन रंग की सज्जा, रत्नों और कांच से गढे़ गए
सुंदर आभूषणों की सजावट और सबसे महत्वपूर्ण स्वर्ण पत्रक का काम है…..
पहले तंजौर चित्रकारी के भव्य चित्र सिर्फ राजभवनों की शोभा हुआ करते थे, लेकिन बाद में ये घर घर में सजने लगी…..
यह चित्रकारी बोलती हुई सी लगती है…..
तंजौर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर, हिंदू मंदिर है जो ग्यारहवीं सदी के आरंभ में बनाया गया था…..
इस मंदिर को राजराजेश्वर या राजराजेश्वरम् के नाम से भी बोला जाता है…..
इस मंदिर पर पड़ती भोर और सांझ की किरण मंदिर के झिलमिलाते हुए पत्थरों को ज्योर्तिमय बनाती है…..
पूर्णिमा के दिनों में इस मंदिर में चंद्रमा की किरण और मंदिर के शिखर का अद्भुत खेल देखने को मिलता है…..
विश्व में यह पहला और एकमात्र मंदिर है जो ग्रेनाइट से बना हुआ है….
अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और केन्द्रीय गुम्बद से यह लोगों को आकर्षित करता है…..
इस मंदिर का भव्य दरवाजा द्राविड़ियन शैली का उत्कृष्ट नमूना है….
भक्तों द्वारा सामूहिक शिवस्त्रोत उच्चारण की ध्वनि मंदिर के दृश्य को सिर्फ आंखों से ही नहीं
भावों से भी भव्य बना देती है……
यहां का शिवलिंग भारत के सबसे ऊंचे शिवलिंगों में से एक है….
मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम् के भीतर एक चौकोर मंडप पर नंदी जी विराजमान हैं….
शिवलिंग की ऊंचाई के अनुरूप ही नंदी को भी ऊंचा बनाया गया है…..
शैवधर्म के अनुयायियों के लिए यह पवित्र स्थल है…..
इसकी उत्कृष्टता के कारण ही इसे विश्व धरोहर में शामिल किया गया है….
तंजौर स्थित महाराजा सरफरोजी का महल एशिया की सबसे पुरानी लाइब्रेरियों में से एक है…..
तेनालीराम जैसे मशहूर साहित्यकार की रचनाएं यहां दृश्य रूप में दिखती हैं….
तो दूसरी तरफ अनमोल भारतीय धरोहर बांस की पत्तियों पर लिखे हुए साहित्य को पलायन होने और नष्ट होने से बचाने में भोसले परिवार का योगदान दिखता है…..
सारे शहर का नज़ारा बेल टावर से दिखता है….
म्यूजियम को देखने पर देवलोक का नज़ारा मूर्तियों के माध्यम से दिखता है…
जो उस जमाने के कलाकारों की कार्यकुशलता और निपुणता को बताती है….
ब्रिटिश काल में तंजौर का भव्य महल भोसले परिवार का निवास स्थान बना….
दरबार हाल की भव्यता आंखों को पलक न झपकने के लिए मजबूर कर देती है….
चटकीले रंगों में रंगे स्तंभ,अद्भुत चित्रकारी को दिखाती छत, मनोहर लगती है…..
तंजौर से थोड़ी दूर पर ही ऐरावतेश्वर मंदिर,जीवंत मनोरा किला, कुंभकोणम, श्रीरंगम भी
तमिल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है……
तंजौर शहर को देखने के बाद, तंजौर की चित्रकारी हो या बृहदेश्वर मंदिर निश्चित तौर पर पर्यटकों को वापस अपनी तरफ खींचता है…….
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
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बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है इस शहर के इतिहास को।ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद।