मेरी ये कविता कारगिल विजय दिवस के साथ, वतन पर मर मिटने वालों को समर्पित है……
शहादत शहीदों की इतिहास के पन्नों मे
दर्ज हो जाती हैं…..
गुजरते हुए समय के साथ ….
कहीं विजय स्मारक के रूप में
कभी विजय दिवस पर शहीदों को सम्मान देते हुए
याद की जाती हैं…..
सुनकर खबरें जवानों की शहादत की
आंखें नम हो जाती हैं………
शहीदों के परिजनों का करुण क्रंदन
हृदय को द्रवित करता है………
परिजनों का गुस्सा तंत्र पर और
दहशतगर्दी के लिए वाजिब दिखता है……..
तिरंगे में लिपटे शहीदों को देखकर तिरंगा भी
मायूस नज़र आता है……..
वतन पर मर मिटने वालों से लिपटा हुआ
दिख जाता है……..
ये कैसी दहशतगर्दी है जो खून की होली खेलती है…….
आतंक को माध्यम बनाकर जवानों के शरीरों को
तरह तरह के हथियारों से छलनी करती है……….
दिल में गम और आंखों में गुबार लिए हुए………
शहीदों के परिवार के साथ
सारा देश रोता है……..
सीमा पर तैनात सैनिक कभी चैन की नींद
नहीं सोता है………
नफ़रत के बीजों का सिला……..
आतंक का पर्याय बन चुके …….
ऐ देश! तू भी तो चुकायेगा……..
दूसरों के लिए नफ़रत की पौध रोपते रोपते
खुद कहां बच पायेगा……
केवल शहीदों का परिवार ही नहीं……
हर देशवासी जांबाजों के लहू का हिसाब मांगता है…..
हंसता खेलता हुआ परिवार कुछ ही पलों में
गम में डूबा हुआ नज़र आता है…..
शहादत और दिलेरी कभी चुप नही बैठती है……..
एक के शहीद होते ही पीछे से दिलेरों
की फ़ौज उमड़ती है…..
सरहदें सिर्फ खून से ही नहीं सींची जाती………
यह बात दहशतगर्दों को क्यूं नहीं समझ आती….
नफ़रत और आतंक को अपना ईमान समझने वालों के लिए
मानवता और इंसानियत की बात फिजूल की होती हैं….
स्वर्ग सी सुंदर वादी भी चारों तरफ बिखरा
रक्त देखकर रोती है……
(चित्र इन्टरनेट से)
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बिल्कुल सही लिखा।।आज तिरंगा भी मायूस है।
मेरे भावों को सराहने के लिए धन्यवाद..
🙏🏽
Salute to our soldiers who sacrifice themselves for safety of our country..
👏👏👏👏
सुन्दर । नमन शहीदों को।
धन्यवाद 😊
वाह, बहुत बढ़िया