हो गया परिंदों के शहर से
आमना सामना ….
हर परिंदे का था अपने आप को
सर्वोपरि मानना….
कुछ परिंदों को मै पहचानती थी….
कुछ को ईश्वर की खूबसूरत सौगात
मानती थी…..
स्वर के उतार चढ़ाव के साथ आवाजें
आ रही थी….
मुर्गे की बांग ही तो थी, जो
पक्की सी नींद को…..
कच्ची नींद मे बदलती जा रही थी….
अधखुली सी आंखें थी
दिमाग मे अलग-अलग परिंदों की बातें थी…..
था वो सिर्फ परिंदों का ही शहर…..
दूर तक दिख रही थी बहती हुई नदी थी या नहर….
हमने सोचा चलो हम भी घूमते हैं…..
इसी बहाने परिंदों की बातों को पहेली की तरह
सोच समझकर बूझते हैं…..
तोतों का झुण्ड उड़ा चला आ रहा था……
अपनी कर्कश आवाज को
कानों तक पहुंचा रहा था……
फलों के वृक्षों को अपना समझ लिया….
( चित्र internet से )
थोड़ी ही देर मे गिलहरियों और जीव जंतुओं से
लड़ भिड़ लिया….
उड़ चला फिर से अलग दिशा की ओर….
शायद था उनकी रटी रटायी बातों का कोई और छोर….
कौए और गिद्धों का अपना अलग ही
साम्राज्य दिख रहा था….
( चित्र internet से )
पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाता हुआ
हर एक परिंदा दिख रहा था….
बाज दिखे तो वो बादलों के ऊपर अपनी
उड़ान भरते नज़र आ रहे थे….
बार बार अपनी नज़रों को
जमीन की तरफ फेर रहे थे…..
ऐसा लगा मानो ऊंचाई पर रहते समय
धरा पर नज़रों को रखने की बात को
दृढ़ता के साथ बोल रहे थे….
तभी दिख गया अचानक से मोर….
कर रहा था बड़ी जोर से शोर…..
अपनी दर्प से भरी हुई चाल से
चला आ रहा था
( चित्र internet से )
पक्षियों का राजा होने की बात को
इतरा इतरा कर अपनी भाव भंगिमा से ही बता रहा था…..
आकाश मे छाये हुए थे घने काले मेघ…..
मयूर ने फेरे हुए थे आकाश की तरफ नेह…..
देखते ही देखते अपने नृत्य से बादलों को रिझा लिया…..
काले बादलों को बरसात की बूँद के रूप मे
धरा पर उतार लिया…..
पक्षियों का संसार भी कितना प्यारा और अनमोल होता है…..
जीवन इनका जीवंतता से भरपूर लगता है……
( चित्र internet से )
इंसानों के साथ-साथ प्रकृति ने, परिंदों को भी
पर्यावरण संरक्षण ,और संतुलन की जिम्मेदारी सौंपी होती है….
जिसे परिंदों ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निभायी होती है……
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Beautiful poem
Thanks ☺
सुन्दर प्रस्तुति