हर जीव जंतु की अपनी भाषा होती है …..
कई जीव मूक होकर भी बोलते हैं ….
मूक जीवों में पेड़ पौधे सबसे आगे
खड़े दिखते हैं …..
वनस्पतियों की बातें हमें नहीं सुनायी पड़ती ….
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह सिद्ध हो चुका है कि
पौधों में जीवन होता है …..
और जहां जीवन होता है …..
वहां भाषा होती है …..
जीवन हमेशा अपने आसपास के
वातावरण से प्रभावित होता है …..
इंसान भी अगर शांत दिमाग से जीव जंतु को देखे
तो शायद उनकी मूक भाषा को भी समझ सकता है …..
मनुष्य को भगवान ने इंसानियत के साथ साथ
मानवीय संवेदनाओं से नवाजा है …..
भाषा का ज्ञान इन गुणों के साथ मिलकर
इंसान के जीवन को सार्थक कर देता है …..
जन्म के साथ ही जीवन भाषा और भावों
के साथ गहराई से जुड़ जाता है …..
अजन्मा शिशु भी मां के हाव-भाव और ध्वनि से
ही भाषा को समझना शुरू कर देता है …..
जानवर हो या कोई और जीवन
भाषा की वर्णमाला को जाने बगैर भी
भाव भंगिमा और ध्वनि के उतार चढ़ाव
से भाषा को समझने की कोशिश करता
हुआ दिखता है …..
विश्व का हर कोना किसी न किसी
भाषा के अधीन रहता है ……
लिखी और पढ़ी जाने वाली हर भाषा की
अपनी वर्ण माला होती है …..
हिंदी वर्ण माला की तरफ नज़रों को फेरो तो
वर्णों के उच्चारण में शरीर के अंगों का
महत्त्व पता चलता है …..
नाभि से लेकर नासिका तक का सहयोग दिखता है …..
अच्छा समन्वय ध्वनि उत्पन्न करने वाले अंगों और
वर्ण के बीच में दिखता है …..
वर्ण मिलकर शब्द बनाते हैं …..
शब्द बनते ही वाक्य को बनाने की कोशिश में
जुट जाते हैं …..
वाक्य अपने आप को तरह-तरह की मात्राओं
और चिन्हों से सजाता है …..
देखते ही देखते व्यक्ति के भावों से
वाक्य जुड़ जाता है …..
हर एक भाषा की अपनी शैली होती है …..
लिखने का अपना तरीका होता है …..
भाषा की सुंदरता उसके लिखे या पढे जाने के
तरीके और सलीके पर निर्भर करता है ..
लिखने की विधा भाषा की लोकप्रियता बढा़ती है …..
लेखक से कविता, कहानी,शेरों शायरी या
गद्य लिखवाती है ……
अलग-अलग वर्णमाला होते हुए भी
कभी कभी भाषाओं का अद्भभुत
मेल दिखता है ……
दूसरी भाषाओं के शब्दों को लेखक
लिखने या बोलने की शैली में अपनाकर
अपनी कृतियों को बोलचाल की
भाषा से सजा लेता है…….
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
0 comment
Such a deep and a wonderful post ma’am !!
Thanks ☺
अत्यंत ज्ञानवर्धक।
धन्यवाद