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PODCAST-यात्रा पुरानी दिल्ली की 

by 2974shikhat October 30, 2017
by 2974shikhat October 30, 2017

मेरी इस पोस्ट को मेरी आवाज मे सुनने के लिए आपलोग इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

Old Delhi Walk

ये दिल्ली शहर भी बड़ा अजीब सा शहर है।प्यार से अपना लो तो, बिल्कुल अपना सा लगता है, नही तो बेगाना सा लगता है।पूरे भारत की सभ्यता और संस्कृति की झलक यहाँ दिख जाती है,भारतीय सभ्यता और संस्कृति के पीछे-पीछे ही पाश्चात्य संस्कृति भागी चली आती है।

अगर आपने अपने आप को दिल्ली शहर के किसी कोने मे समेट लिया तो सारी जिंदगी आप उसी कोने और दायरे मे निकाल देंगे। कभी इस बात का एहसास भी न होगा कि, देश की राजधानी मे रहते हुए भी हम,कई सारी जगहों से आज तक रूबरू भी नही हैं।

इसी सोच को दरकिनार कर हमने पुरानी दिल्ली हैरिटेज वाॅक पर जाने का मन बनाया।नयी दिल्ली की तरफ रहने वाले लोंग अक्सर भीड़ ज्यादा होने के कारण पुरानी दिल्ली की तरफ का रुख करने से कतराते हैं।

मन मे इरादा पक्का था तो,घर की कुछ चीजों को व्यवस्थित और कुछ चीजें अव्यवस्थित ही छोड़ कर,सुबह-सुबह ही मेट्रो स्टेशन का रुख कर लिया।सामान्यतौर पर पुरानी दिल्ली घूमने के लिए, तीन बातें मेरे हिसाब से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं।पहला… आपका आत्मबल मजबूत होना चाहिए, दूसरा.. आपके जूते चप्पल मजबूत होने चाहिए, तीसरा..अगर खरीददारी करनी है तो, मोलभाव करने की अद्भुत क्षमता होनी चाहिए…इसके बाद ही आप स्ट्रीट फूड का मजा ले सकते हैं।

सँकरी सँकरी गलियों के मुहानों पर बसती है पुरानी दिल्ली की पहचान चाँदनी चौक।वहाँ पर घूमते समय मै यही सोच रही थी।सारे शहरों के पुराने इलाके एक जैसे ही होते हैं चाहे लखनऊ का अमीनाबाद और चौक हो या इलाहाबाद का चौक हो।

हम अगर अकेले होते तो शायद कुछ दूर तक रिक्शे की सवारी को प्राथमिकता देते, लेकिन हमारे साथ इंग्लैंड से आये हुए,डेविड और हनीफा भी थे।डेविड पेशे से इंजीनियर और हनीफा वकालत के पेशे से थी।उनका पेशा उनके व्यवहार से भी मिल रहा था।मतलब हनीफा बातूनी और डेविड शांत होकर चीजों को देखने वाला।

उनका इरादा पैदल ही पुरानी दिल्ली की सैर करते हुए स्ट्रीट फूड का मजा लेने का था।मैने भी अपने जूतों की लेस को कस कर बाँधा,और उन लोंगो के साथ ही चल दी पहली बार, पुरानी दिल्ली की गलियों की सैर पर।

सबसे पहले हमने रुख किया शिव मंदिर की तरफ उन्हें शंकर भगवान की असीमित शक्ति,अध्यात्म और ब्रम्हाण्ड के बारे मे बता कर,मंदिर के बाकी देवी देवताओं के बारे मे बताकर हम दरीबाँ कला की गलियों की तरफ चल पड़े।गली के कोने पर ही दिख गयी लाजवाब समोसे और जलेबी की दुकान।

Old Delhi walk

मेरे ख्याल से उन दोनो ने पहली बार जलेबी और समोसे का स्वाद चखा होगा ,उनके चेहरे की भाव भंगिमा बता रही थी कि, ऐसी बेहतरीन चीजें भी होती हैं खाने की ,खुशी के भाव के साथ हम आगे बढ़ चले ।दरीबाँ कला की गलियों मे मुख्य तौर पर आभूषणों का बाजार सजता है।
हर जगह आप को अलग अलग आकार और प्रकार की दुकानें दिख जायेंगी ।

अगला कदम हमने जामा मस्जिद की तरफ बढ़ाया।पर्यटको की भारी भीड़ का जमावड़ा। उस भीड़ के साथ विदेशियों से भीख मांगने वालों की भीड़,ज़रा असहज स्थिति मे पहुँचा देती है।
उसके अलावा गोरो को देख कर लोंग उनके साथ अपनी फोटो खिंचवाने की चाहत को दबा नही पाते, और पर्यटकों को भी असहज स्थिति मे डाल देते हैं।

मेरी रुचि तो सामान्य तौर पर जीवन से जुड़ी हुई छोटी छोटी चीजों को देखने मे रहती है, लेकिन मेरे पति की इतिहास की जानकारी गहरी है, वो डेविड और हनीफा को बारीकी से जामा मस्जिद के बारे मे जानकारी दे रहे थे।

Old Delhi walk

मैने “जामा मस्जिद” पहली बार देखा था,काफी भव्यता दिखाई पड़ती है।आराधना के कोई भी स्थान हो,अगर आप सकारात्मक विचारों के साथ वहाँ जाते हैं, तो अनुभूति भी वैसी ही होती है।मुझे “जामा मस्जिद की कलात्मकता और भव्यता ने अपनी तरफ खींचा।काफी दूर तक सीढ़ीयाँ चलती जाती है,आप उनपर चढ़ते जाइये बड़े से चबूतरे पर जाकर सीढ़ीयाँ खत्म हो जाती हैं और अंदर प्रवेश के लिए द्वार मिलता है।

हमने भी अंदर प्रवेश किया आकाश की तरफ नज़रों को फेरा तो बाजों का समूह आकाश मे खेलता हुआ नज़र आ रहा था ।थोड़ी दूर पर ही लाल किला दिखाई दे रहा था।समय की कमी के कारण “लाल किला” जाने का हमारा इरादा न था ।

“जामा मस्जिद” की भव्यता सच मे अद्भुत है ।थोड़ा समय “जामा मस्जिद” की सीढ़ियों पर बिताने के बाद हम वापस अपनी राह हो लिये।

अगर आप “पुरानी दिल्ली” के लोगों की मानसिकता की तरफ नज़र डालेंगे,तो हर धर्म और संस्कृति के लोग सम्मानपूर्वक अपना जीवन यापन करते हुए दिखते हैं।कितनी सँकरी गलियों के बीच मे पुरानी शैली के दरवाजों और खिड़कियों के पीछे बड़ी बड़ी हवेलियाँ छिपी दिखती हैं।

कुछ पुश्तैनी हवेलियों के अंदर अभी भी पुरानी दिल्ली के धनाढ्य परिवार रहते हैं,तो कुछ मे ताले लटके हुए दिखेंगे,और कुछ हवेलियाँ जर्जर अवस्था मे दिखाई देती हैं।ऐसी ही पुर्नजीवित हवेली है “धर्मपुरा की हवेली” जो अब होटल के रूप मे उपयोग मे लायी जाती है।

Old Delhi Walk

हमारा इरादा वहाँ चाय पीकर आगे बढ़ जाने का था चाय पीने की तरफ के हमारे झुकाव ने डेविड और हनीफा को भी चाय का स्वाद लेने की तरफ मोड़ दिया और उन्होंने किसी भी तरह के एल्कोहलिक पेय के लिए मना कर दिया और हमारे साथ मसाला चाय का मजा लिया।
एकबार फिर से हम गलियों से निकलकर ज़रा चौड़ी सड़क पर पहुँच गये।सड़क के किनारों पर स्थित पुरानी सराय और हवेलियों को दूर से ही देखते हूए आगे बढ चले और एक लस्सी की दुकान पर जाकर लस्सी का स्वाद लेने के लिए ठहर गये।

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डेविड और हनीफा को नही पता था कि कर्ड क्या होता है ।उन्होंने पहली बार लस्सी का स्वाद चखा था। उनके चेहरे के भावों को मै शब्दों मे नही बता सकती ।बड़ी जोर से उन्होंने अपनी पाश्चात्य शैली वाले अंदाज के साथ चियर्स बोलते हुए लस्सी के कुल्हणों को आपस मे टकराते हुए अपनी खुशी को जतलाया।

आगे बढ़ते हुए हमने शीशगंज गुरूद्वारा मे अपना माथा टेका ।मेरे लिए भी किसी गुरुद्वारे के अंदर जाने का यह पहला अनुभव था।मंद गति से चलता हुआ कीर्तन मन को शांत करता है।गुरुद्वारे के इतिहास के बारे मे जानते हुए हम आगे बढ़ चले ।

Old Delhi walk

करीब चार घंटे की हमारी पैदल सैर हो चुकी थी ।अगला रुख खारी बावली स्पाइस मार्केट का था।खारी बावली मसालों और ड्राई फ्रूट्स का थोक बाजार है।रास्ते पर चलते-चलते हमे सामान ढोने वाली कई बैलगाड़ियाँ दिखाई दी ।सजे सँवरे हुए बैलों ने अपनी तरफ ध्यान खींचा ।

दिमाग पर जोर डालने पर याद आया कि कुछ दिन पहले ही तो गोर्वधन पूजा हुई थी इसीकारण बैलों के पैरों पर काफी ऊपर तक आलता लगा हुआ था ।शरीर पर आलता हल्दी और सिंदूर की सहायता से आकृतियाँ बनायी हुयी थी।हमारे मेहमानो के लिए ये कौतूहल का विषय था।

अचानक से मसालों की तेज महक नाक मे घुसी ।बड़ी दूर से ही समझ मे आ गया कि हम स्पाइस मार्केट के पास पहुँच चुके हैं। डेविड और हनीफा ने कई तरह के मसाले खरीदे मेरी राय उनके लिए जरूरी थी क्योंकि मेरे पति ने उन्हें ये बात पहले से ही बता दिया था कि मुझे खाना बनाना,बना कर खिलाना और खुद खाना बेहद पसंद है।

Old Delhi walk

शाकाहारी भोजन मे उपयोग मे आने वाले मसालों की सलाह मैने उन्हें दी।उसके बाद हम वापस मेट्रो स्टेशन के रास्ते पर चल दिये।डेविड और हनीफा को बाकी के स्ट्रीट फूड और दोपहर के खाने के लिए एक वेज रेस्टोरेंट के पास छोड़कर हमने उनसे चलने की अनुमति माँगी।

हनीफा ने हाथ मिलाकर शुक्रिया कहा, और गले मिलकर मुझसे ये वादा कर के गयी कि अगली बार दिल्ली यात्रा पर आने से पहले वो हिन्दी भाषा जरूर सीखकर आयेगी, और मेरे घर आकर भारतीय खाना बनाना जरूर सीखकर जायेगी।इसी वादे के साथ हम अपने अपने रास्तों पर बढ़ चले…….

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Nicely described!

Mrs. Vachaal October 30, 2017 - 1:37 pm

Thanks 😊

Manisha Kumari November 11, 2017 - 10:52 am

अच्छा अनुभव रहा होगा आपके लिए भी।

Mrs. Vachaal November 11, 2017 - 12:40 pm

हाँ बहुत अच्छा अनुभव था ,और ऐसे लोगों से मिलना जिनकी नज़रों मे हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिये सम्मान और भारतीय खाना इतना अच्छा होता है वाले भाव हो ,तो मन भी खुश हो जाता है 😊

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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