आज यात्रा पर चलते हैं “मालवा के स्वर्ग “माण्डू शहर की……
यह धार जिले के माण्डव क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शहर है……
माण्डू शहर न सिर्फ ऐतिहासिक शहर है,बल्कि कलात्मकता और वास्तुकला की दृष्टि से भी आश्चर्य में डालता है……
मालवा की माटी के बारे में कहा जाता है कि
“मालवा माटी गहर-गंभीर,पग-पग रोटी डग-डग नीर”…..
धार शहर से 35कि०मी०की दूरी पर स्थित यह शहर , विंध्य की पहाड़ियों में 2000 मी० की ऊंचाई पर स्थित है..
मूलत: परमारो की राजधानी रहा……
परमारो के काल से ही इसे प्रसिद्धि मिली, और तेरहवीं शताब्दी में यह मुस्लिम शासकों के अंतर्गत आ गया…..
विंध्याचल की पहाड़ियों पर स्थित होने के कारण, इसका सुरक्षा की दृष्टि से विशेष महत्व था….
तेरहवीं शताब्दी में मालवा के सुल्तानों ने इसका नाम,शादियाबाद यानि “खुशियों का शहर”
रख दिया….
माण्डू के सौंदर्य ने अकबर तथा जहांगीर दोनों को ही आकृष्ट किया था…..
यहां पर पाये जाने वाले शिलालेख इस बात को बताते हैं…..
जहांगीर की आत्मकथा “तुजके जहांगीर”में वर्णन है कि, जहांगीर को माण्डू के प्राकृतिक दृश्यों से बड़ा प्यार था….
विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं की हरियाली से ढंकी माण्डू नगरी, हर मौसम में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है….
लेकिन सबसे ज्यादा पर्यटकों की भीड़ बारिश के मौसम में होती है….
पर्वत पर स्थित किले के आसपास पानी से भरे हुए बादल, ऐसे मंडराते हैं,मानो उनका एकमात्र उद्देश्य पर्यटकों को भिगोना हो……
माण्डू,कवि और राजा बाज बहादुर एवम् उनकी रानी रुपमती के प्रेम का ,स्मृति चिन्ह भी माना जाता है…..
मालवा के लोग अपने लोकगीतों में उनके प्रेम की गाथाओं को बड़े चाव से गाते हैं….
इतिहास एक बार फिर से खुद को दोहराता हुआ सा लगता है….
खंडहर की शक्ल में तब्दील हो चुके बड़े बड़े महल इतिहास के पन्नों के साथ,सत्ता के संघर्ष,स्त्रीलोलुपता की बात को बताते हैं…
कभी चित्तौड़गढ़ में रानी पद्मिनी का जौहर दिखता है, तो दूसरी तरफ खुद के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को बचाने के लिए, माण्डू में रानी रूपमती के जीवन का अंत होते हुए दिखता है…..
आल्हा ऊदल के बिना माण्डू का वर्णन अधूरा माना जाता है…..
आल्हाखण्ड में महाकवि जगनिक ने 52 लड़ाइयों का जिक्र किया है…..
इसमें पहली लड़ाई माडौगढ़(वर्तमान माण्डु) की मानी जाती है……
इसीलिए आल्हा गायकों के लिए माण्डू तीर्थ स्थल है…..
माण्डू का प्राचीन नाम मण्डप दुर्ग या माण्डवगढ़ है……
मंडप नाम से इस नगर का उल्लेख जैन ग्रंथ तीर्थमाला “चैत्यवंदन”में किया गया है…..
यहां भगवान सुपार्थनाथ की पद्मासन मुद्रा में सफेद रंग की प्राचीन मूर्ति स्थापित है…..
मांडवगढ़ में अनेक ऐतिहासिक जैन मंदिर होने के कारण, यह स्थान जैन धर्म को मानने वालों के लिए तीर्थ स्थान है….
माण्डू की ऐतिहासिक इमारतों को देखने के चाव से, पर्यटक घुमावदार रास्तों के साथ मांडू के 12प्रवेश द्वारों के साथ आगे बढ़ते हैं….
सबसे पहला दरवाजा दिल्ली द्वार कहलाता है……
इसे मांडू का प्रवेश द्वार भी कहते हैं…..
अन्य दरवाजों की शुरुआत के साथ ही मांडू दर्शन का आरंभ हो जाता है…..
रानी रूपमती का महल- यह महल पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है…..
कहां जाता है कि लगभग 400मीटर ऊंची चट्टान पर स्थित इस महल का निर्माण बाज बहादुर ने रानी रुपमती के नर्मदा नदी की खूबसूरती को निहारने के उद्देश्य से बनवाया था….
मौसम की विपरीत परिस्थितियों में नर्मदा नदी के दर्शन ,न होने की स्थिति से बचने के लिए महल में ही रेवा कुण्ड का निर्माण करवाया गया…
जिसमें नर्मदा नदी का जल रहता था….
कहते हैं कि रानी रुपमती की आस्था नर्मदा नदी से जुड़ी हुई थी….
बाज बहादुर का महल – इसका निर्माण सोलहवीं शताब्दी में हुआ….यह महल अपने बड़े बड़े कमरों और बड़े आंगन के साथ भव्य दिखता है….
इस महल की खासियत यह है कि ,कोई भी व्यक्ति अगर इस महल के अंदर गुनगुनाता है तो,
दूसरे हाल में वही गीत मधुरता से सुनाती पड़ता है….
होशंगाबाद का मकबरा-यह उत्तम कला का नमूना है,और ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल है….
यह अफगानी आर्किटेक्चर का एक बेहतरीन नमूना है….
संगमरमर की बनी जालियां,गुंबद और बरामदे इसके आकर्षण को बढ़ाते हुए से लगते हैं….
इसे देखकर पर्यटकों को ताजमहल देखने का सा भ्रम होता है…
जामा मस्जिद और अशर्फी महल – इस मस्जिद का निर्माण होशंगशाह के शासनकाल में किया गया था…
बेहद सादगी से बनाये जाने के बाद भी इसकी गिनती मांडू की नायाब इमारतों में होती है…. इसके सामने ही अशर्फी महल स्थित है….जिसका निर्माण मदरसे के लिए किया गया था…
जहाज महल-पानी में तैरता जहाज महल दो तालाबों के बीच में बनी खूबसूरत इमारत है….
इस इमारत को दूर से देखने पर तालाब के बीच में, जहाज के लंगर डाल के खड़े होने का बोध होता है…
हिंडोला महल-यह भी मांडू की खूबसूरत इमारतों में से एक है….
महल की दीवारों के कुछ झुकी होने के कारण यह महल हवा में झूलता हुआ सा लगता है….
इसके परिसर में प्राचीन चंपा बावड़ी है, जो अपनी कलात्मकता की बात को बताती हुई सी लगती है….
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर – यह जगह आस्था के साथ प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी पर्यटकों को अपनी तरफ खींचती है….
मंदिर का सौंदर्य अद्भुत है…
ऊपर वृक्षों से घिरे तालाब से जल की एक धारा शिव भगवान का अभिषेक करती हैं….
इन जगहों के अलावा अनेक आकर्षित करने वाली जगहें मांडू के आसपास दिखती हैं….
माण्डू की लगभग सभी इमारतें वर्षा के जल के संचयन और जल प्रबंधन की बात को बोलती हुई सी लगती हैं….
यही कारण है कि निर्माण के समय से ही ये इमारतें विश्व विख्यात रहीं….
पर्यटन की दृष्टि से माण्डू मध्य प्रदेश में एक उत्तम जगह है….
इतिहास प्रेमी, प्रकृति प्रेमी के अलावा किसी अच्छी जगह घूमने का इरादा रखने वाले पर्यटकों को मालवा का मांडू कभी निराश नहीं करेगा……
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
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अद्भुत वर्णन।
धन्यवाद 😊