माटी का घड़ा ,जीवन दायी जल से भरा ……
बड़े यत्न से सावधानी पूर्वक
आकार मे ढाला हुआ …..
देखने से लगता निर्माण के हर स्तर पर
केवल कुम्हार के हाथ से साधा हुआ …..
कच्ची माटी से ढल कर …..
चाक से गुजरकर …..
आग मे तपकर …..
मिल गया आकार ……
कच्ची माटी की रचना …..
किसी ने ढाला …..
किसी ने तराशा …..
किसी ने उपयोगी जीवन दे डाला …..
निर्माण के दौरान हुआ बेहाल …..
तब समझ मे आया …..
जो दिखता है सामने
सिर्फ वही नही होता संसार ….
ध्यान मे आया तब परवरदिगार …..
तपा दिया,पका दिया ……
जलते हुये अंगारों से
गले भी मिलवा दिया …..
देखकर ऐसा लगा मानो
जोड़ लिया हो ,मालिक की बंदगी मे
अपने हाथ ……
तपने के बाद शीतल प्रवृत्ति रखूँ ……
भरे हुए जल को पवित्र और शीतल रखूँ ….
उपयोगी बनने के बाद
स्वार्थ को परे रखूँ ……
जीवन मे रख सकूँ
हर उस व्यक्ति का मान ……
अनदेखा हो या अनजाना …..
बढ़ गया हो जो अपनी राह पर
देकर सार्थक सहारा …..
छलकाना मत भरे हुये घड़े से
ज़रा भी अभिमान ……
पता है, मिट्टी से बना हूँ ……
अंगारो से मजबूत बना हूँ ……
अंत मे मिट्टी मे ही समाना है……
दंभ हो, दर्प हो, अहम् हो या हो
अभिमान का कोई और भी नाम
क्यूँ दिखाना है ……
बस अपनी राह पर ईमानदारी से
बढ़ते जाना है….
( समस्त चित्र internet के द्वारा )