माँ के आँचल का छोर
छूटता है हर बच्चे के हाथों से….
जीवन के सफर मे…..
भविष्य की इमारत बनाने के क्रम मे…
होते हैं ,माँ और बच्चे दोनों के ,आंखों के कोर नम….
होता है,प्यार और दुलार के परिवेश से, अलग होने का गम….
जीवन का सफर भी आश्चर्य मे डालता है….
देखते ही देखते नन्हा बच्चा, पता नही कब बड़ा हो जाता है…
शिशु अवस्था से लेकर बुजुर्गावस्था तक….
अलग-अलग पड़ाव पर जीवन ठहरता है….
कुछ समय के विश्राम के बाद,एक बार फिर से
जीवन के संग्राम मे संचित ऊर्जा के साथ उतरता है…..
माँ और बच्चे का साथ अनमोल होता है…..
शिशु के संसार मे आंखें खोलने के समय से….
माँ के साथ लाड़ प्यार और दुलार से जुड़ा होता है….
बोलने और समझने की कोशिश करता हुआ शिशु…
माँ के नि:स्वार्थ प्यार और दुलार को भलीभांति समझता है….
तोतली जुबान हो या लड़खड़ाते कदम ….
माँ ही लड़खड़ाते कदमों को संभाल पाती है….
माँ ही तोतली जुबान से निकले शब्दों के अर्थ को
समझ पाती है…
जीवन की विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए ….
जरूरी होती है ,लाड़ प्यार और दुलार की बात…..
लाड़ ,प्यार और दुलार ही मिटाते हैं ,जीवन के झंझावात …..
बच्चों मे भी विशेषकर बेटियाँ परिवार से
कोमलता से जुड़ी होती हैं ….
अपने भविष्य के निर्माण के समय,आगे बढ़ते हुये भी….
परिवार की चिंता, उनकी व्याकुल सी आंखों मे दिखती है….
रूंधा हुआ स्वर और नम आंखें ….
बता देती है उनके मन की आकुलता…..
ऐसी भावनात्मक परिस्थितियों मे भी…..
मां को खड़ा होना होता है, अपने मजबूत इरादों के साथ…..
आगे बढ़ते हुए बच्चों के मानसिक संबल और
भावनात्मक सहारे के रूप मे …..
अपनी कोमलता अपने भावों को, कभी जाहिर कर के
कभी छुपा के…..
आखिर सवाल बच्चों के भविष्य का, सामने खड़ा होता है…..
बात चाहे भूतकाल की हो….
वर्तमान काल की हो….
या हो भविष्य की…..
माँ की आंखों के कोर हमेशा से नम होते रहे हैं….
और होते रहेंगे…..
बच्चे भविष्य की इमारत के निर्माण के क्रम मे…..
माँ के आँचल को छोड़कर…..
आगे बढ़ते रहे हैं,और बढ़ते रहेंगे….
(सभी चित्र internet से )