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भारतीय समाज और व्रत, उपवास

by 2974shikhat May 10, 2019
by 2974shikhat May 10, 2019

भारतीय सामाजिक परिवेश मे ,व्रत उपवास का अलग ही महत्व है।

सामान्यतौर पर व्रत का अर्थ हम दृढ़ संकल्प से लेते हैं,और उपवास का मतलब ईष्ट की आराधना करने से होता है।

Expression

हमारे देश मे व्रत धार्मिक मान्यताओं से तो मजबूती से जुड़े होते हैं।

धार्मिक मान्यताओं से कुछ पलों के लिये अगर ध्यान हटाइये तो,व्रत उपवास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ा दिखता है।

राजनीति से व्रत उपवास को जोड़कर, इसका एक और मजबूत पक्ष दिखता है।

राजनीति पार्टी का आपसी द्वंद हो,मानमनौव्वल अप्रभावी दिख रही हो।

किसी व्यक्ति, संगठन या सामाजिक सारोकार से जुड़े किसी मुद्दे को, अगर मजबूती से उठाना हो तो, व्रत और उपवास !अनशन के रूप मे सामने आता है।

Expression

व्यक्ति, समूह या संगठन की मांग पूरा होते ही उपवास समाप्त हो जाता है।

आज के समय मे व्रत और उपवास का महत्व इसलिए ज्यादा समझ मे आता है क्योंकि अप्राकृतिक और गरिष्ठ वस्तुओं का खान पान मे प्रयोग बढ़ गया है।

स्टार्टर कल्चर !शादी ब्याह और उत्सव के समय जाने कितनी कैलरी शरीर मे इकट्ठा कर देते हैं।

पाचन क्रिया अत्यधिक श्रम के कारण कमजोर पड़ती जाती है।

बार बार शरीर को आगाह करके,आने वाली बीमारियों के बारे मे बतलाती है।

व्रत उपवास के बारे मे लिखने का ख्याल मुझे, भारतीय समाज मे रहने वाले अलग अलग धर्म संप्रदायों की धार्मिक मान्यताओं को पढ़ने के बाद आया।

व्रतों को मुख्य रूप से तीन प्रकारों से समझा जा सकता है

1-नित्य-नित्य व्रत मे ईश्वर भक्ति या आचरण पर बल दिया जाता है।

2-नैमित्तिक -जिसमे किसी प्रकार के पाप हो जाने के बाद दुखों से छुटकारा पाने का विधान होता है।

3-काम्य व्रत-जो किसी कामना की पूर्ति के लिये किये जाते हैं।

भारत मे ही नही बल्कि विश्व मे अधिकांश धर्मों मे, व्रत और उपवास सीधे तौर पर प्रकृति से जुड़े होते हैं ।

Expression

अलग-अलग धर्मों मे क्रमश: व्रत और उपवास को अगर समझते हैं तो….

हिंदू धर्म –
हिंदू धार्मिक मान्यताओं की तरफ ध्यान देने से पता चलता है कि,व्रत उपवास का आरंभ और पारण दोनो आकाश से जुड़ा होता है।

कभी तो सूर्य से जुड़ा होता है कभी चाँद और तारों से जुड़ा होता है।

हिंदू धर्म मे आंतरिक शुद्धि के लिए व्रत! प्रधान तत्व माना गया है।

इसी कारण संसार के अन्य सभी धर्मों की तुलना मे हिंदू समाज अलग-अलग प्रकार के व्रत करता हुआ दिखता है

हिंदू धर्म के अनुसार! रोग पीड़ित समाज के अलावा स्वस्थ समाज के लिये भी उपवास का महत्व वैदिक और पौराणिक काल से बनाया गया है।

इस्लाम धर्म –

इस्लाम धर्म रमजान के महीने मे उपवास रखने की बात करता है।

यह पवित्र महीना कहलाता है जो 29या30 दिनो का होता है।

इस महीने के गुजरने के बाद, आकाश मे चाँद के दिखने के बाद ईद मनाई जाती है।

इस माह का स्पष्ट रूप से यह संदेश होता है कि ,जिस प्रकार हम रमजान के दिनो मे व्यहवार करते हैं,उसे साल के बाकी महीनों मे भी अपने जीवन मे उतारे।

मुख्य रूप से बुरे कामों से दूर रहना,नेक बातों पर अमल करना,उदार रहना और प्रार्थना पर बल दिया गया है।

व्यक्ति इबादत के बल पर अपने गुनाहों को माफ करने के लिए प्रार्थना करता है।

प्रात:काल ब्रम्ह मुहूर्त मे कुछ खाकर और जल ग्रहण करने के बाद, सूर्यास्त के बाद रोजा खुलता है।

खुद के अंदर की बुराई को खत्म करने का आध्यात्मिक महीना है।

बौद्ध धर्म –

बौद्ध धर्म मे भी उपपवास का महत्व है।

बौद्ध धर्म मे उपवास को, आत्मशुद्धि की राह मे पहली सीढ़ी माना गया है।

आठ दिन लगातार निराहार समाधि-चिंतन से ही सिद्धार्थ को बोधि प्राप्त हुई थी और वे बुद्ध कहलाये ।

जैन धर्म –

जैन धर्म के अनुसार उपवास! आत्मा के उच्चभावों मे रमण और सात्विक भावों के चिंतन मे सहायक है।

जैन धर्म मे उपवास! तपस्या का ही एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

जैन धर्म की मान्यता के अनुसार उपवास से देह ही नही ,आत्मा के विकार भी दूर हो जाते हैं।

इन व्रत उपवासों मे भोजन के त्याग के साथ-साथ असत्य व हिंसा त्याग,ब्रम्हचर्य,स्वाध्याय और धर्म ध्यान को महत्वपूर्ण माना गया है।

उपवास का चरमोत्कर्ष जैन धर्म के संथारा मे नज़र आता है।

ईसाई धर्म-

ईसाई समुदाय चालीसा काल मनाता है।

ऐसी मान्यता है कि महात्मा ईसा ने स्वयं एक बार, चालीस दिन और चालीस रातों का उपवास किया था।

विश्व स्तर पर अगर देखे तो,युरोप मे जब पापों का प्रभाव बढ़ा तो,उपवासो को विशेष महत्व दिया गया।

ऐसी मान्यता है कि उपवास काल मे मनुष्य! पतझड़ के समान व्यहवार करता है।

क्राइस्ट मे विश्वास करने वाले लोग, अपने पुराने पापमय जीवन को छोड़कर, नया स्वरूप धारण करते हैं।

उपवास की अवधि के दौरान, प्रायश्चित करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।

सिक्ख धर्म –

सिक्ख धर्म निराहार रहकर उपवास की बात को मजबूती से नही स्वीकारता।

सिक्ख धर्म के अनुसार आत्मा की शुद्धि सबसे महत्वपूर्ण और आपसी भाईचारे और सौहार्द का आधार होती है।

शुद्ध मन , शुद्ध विचार ,शुद्ध व्यहवार ही सिक्ख धर्म का आधार है।

यह बात सत्य है कि हमारा देश अनेक धर्म और संस्कृति को साथ लेकर चलता है

हर धर्म अपने तरीके से, आत्मा को शुद्ध रखने की बात कहता है।

उपवास मुख्य रूप से खुद को समझने का माध्यम,मानवता, इंसानियत,आध्यात्म, देशहित जैसी अनेक बातों को समाज के सामने,स्पष्ट रूप से लाता है।

(चित्र internet से )

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