(चित्र दैनिक जागरण से )
जीवन को जीने की जद्दोजहद में इंसान के अलावा
पशु पक्षी भी लगे होते हैं ….
पक्षियों की अपनी अलग ही दुनिया होती है …..
बड़े आत्मनिर्भर से दिखते हैं ……
पेड़ के ऊपर बैठी हुई बया चिड़िया को देखा ….
अपने काम मे मशगूल थी …..
तिनकों को समेट कर घोंसला बनाने मे मशरुफ थी …
अचानक से मेरी तरफ देखा ….
स्वाभिमान के साथ अपने मुंह को खोला …..
न ईंट, न गारा,न सीमेंट ,न सरिया ….
जरुरत नही कुदाली, और फावड़ा की ……
चाह नहीं मशीनों ,और मजदूरों की ….
जरुरत के मुताबिक कर लेते हैं ……
अपनी छोटी सी बुद्धि का सदुपयोग …..
किसी तरह से प्रशिक्षित नहीं ….
बड़े बड़े शिक्षण संस्थानों से शिक्षित नही …
मिला है हमें प्रकृति से यह गुण …..
समेट लेते हैं अपने पंखों और हिम्मत
के बल पर तिनकों को …..
कुछ पल के लिए शांत हुई …..
फिर से बोलना शुरू किया ….
तिनकों को समेटना उन्हें बुनना हमें
अच्छे से आता है …..
यूं ही नहीं कोई तिनका हमारी चोंच से
बिखर जाता है ….
जितनी जरूरत होती है उसके मुताबिक
ही अपना घोंसला बनाते हैं ….
अन उपयोगी चीजों से,न सजाते हैं,न संवारते हैं ….
इसीलिए बया की अद्भुत कारीगरी को देखकर ….
घोंसले को बुनने की अद्भुत क्षमता को देखकर ….
जमाना आश्चर्य के भाव के साथ देखता है ….
बया की कलात्मकता की सारी दुनिया कायल है …..
ऐसे ही नही बुनकर पक्षी की कला अनुसंधानकर्ताओं के लिये
शोध के लायक है …..
तेज हवाओं के चलने पर झाड़ियां और पेड़ों की शाखें ….
घोंसले को झूला झुलाते हुए खिलखिलाती हैं ….
प्रकृति से ग्रहण सिर्फ उतना ही करते हैं ….
जितने के जरुरतमंद होते हैं ….
बस इसीलिए सखी सहेली कहो या हमजोली
प्रकृति के हमेशा संग रहते हैं ….