महानगरों की भीड़ भाड़ मे….
दौड़ती भागती हुई, इंसान की चाल मे…..
मासूम सा बचपन कहीं खो गया…..
नन्हे बच्चों के भीतर भी
जाने किस कोने मे सो गया…..
महानगरों मे पलते बढ़ते हुए बच्चे…..
सामान्यतौर पर सुख सुविधाओं के तले
पलते और बढ़ते हैं…..
संचार माध्यमों और इंटरनेट का प्रभाव……
बचपन पर असर डालता है…..
बचपन की मासूमियत और कोमलता को…..
मोबाइल और लैपटॉप के बीच मे उलझाता है…..
हो गया हमारा भी एक
मासूम से बच्चे से आमना-सामना…..
उसके मासूम से सवाल और, खिलौनों के खेल ने
हमे उलझा दिया……
बाल मनोविज्ञान पर असर डालती बातों को
बतला दिया……
खिलौनों के बीच मे ……
बहुत सारी गाड़ियों का साथ था ……
महानगरों की सड़कों पर भागने वाले
रिक्शों से लेकर……
आकाश मे उड़ान भरने वाले क्राफ्ट का भी
साम्राज्य था…..
खेल और खिलौनों के बीच मे…..
महानगरों मे रोज के जीवन मे, सामने आने वाला शब्द “ट्रैफिक जाम”
नये खेल के रूप मे जुड़ गया था ……
काल्पनिक रास्तों पर,वाहनों की भीड़ मे ……
रेलमपेल के साथ,ट्रैफिक जाम भी दिख गया……
ट्रैफिक जाम ने, महानगरों मे पलते बढ़ते हुए बच्चों के
मनोविज्ञान पर भी अपना असर डाला होता है …..
स्कूल के रास्ते हों या…..
घूमने फिरने के लिये बाहर निकलने पर
रास्तों का हो साथ…..
आम सी लगती है, ट्रैफिक जाम की बात …..
बेलगाम आवेग हो या…..
आगे निकलने की होड़ मे, हारता हुआ जीवन हो….
दुखी कर जाता है….
बाल मनोविज्ञान इस तरह की बातों को भी…..
खेल और खिलौनों का, हिस्सा बना लेता है…..
देखते ही देखते, कभी तो अपने को…
काल्पनिक ट्रैफिक जाम मे उलझा लेता है…..
कभी अपने काल्पनिक सुझावों, और सूझबूझ से रास्तों को
ट्रैफिक जाम से मुक्त करा लेता है……
त्यौहारों और उत्सवों के समय……
महानगरों की चाल…..
थम सी जाती है…..
चमचमाते हुये रास्तों पर …..
चमचमाती हुई गाड़ियाँ भी, बीच रास्तों पर
जाम के कारण, ठहर जाती हैं……
सुविधाजनक और सुगमता से मिलने वाले…..
सार्वजनिक परिवहन की सुविधा…..
हमारे देश मे काल्पनिक सी लगती है…..
सार्वजनिक परिवहन को, अपनाने के लिए भी…..
इंसान घरों से खुद के वाहन के साथ निकलता है…..
युवाओं और बुजुर्गों के लिए ……
सामान्य सी होती है,”ट्रैफिक जाम” की बात…,.
लेकिन छोटे बच्चों पर पड़ता हुआ दुष्प्रभाव….
उस समय समझ नही आता…….
छोटा बच्चा भी ट्रैफिक जाम के साथ…..
चीखने चिल्लाने और, रास्तों पर उलझने जैसी बातो को…..
अपने खेल का हिस्सा बना लेता है……
ऐसा लगता है मानो……
रोडरेज और ,बेलगाम होते आवेग की नींव…..
कहीं बचपन मे ही तो, नही पड़ जाती है….
आज के बच्चों, कल के युवाओं, और परसों के बुजुर्गों की मानसिक अवस्था को बीमार तो नही कर जाती…..
सवालों के बीच मे कहीं तो समाज उलझता सा दिखता है…..
कहीं सुलझता सा दिखता है…..
(चित्र internet और टाइम्स ऑफ इंडिया से)