(चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
.
समाचारों ने बारिश के दौरान
होने वाली मुसीबतों को ज़रा सा
बढ़ा चढ़ा कर दिखाया और सुनाया….
अचानक से आयी काली घटाओं ने
अपनी पूरी मनमानी को दिखाया…..
पूरे जोश के साथ बादलों ने अपने
दमखम को दिखाया….
जगह जगह गाड़ियों के पहियों को जाम ने
जल भराव मे फँसाया….
सड़क बन गयी कहीं नदी, कहीं समंदर….
दुपहिया वाहनो के पहिये,पहुँच गये गड्ढों के अंदर…
गाड़ियों की बेसुरी आवाज ने चिल्लम पों मचाया….
बस इसी कारण से कानों को दुखाया…..
हर कोई हैरान,हर कोई परेशान…..
चेहरा लटका हुआ,चेहरे पर चिंता के गहरे निशान…..
किसी को आफिस की पड़ी, किसी को घर की पड़ी…..
पता नही कहाँ से भागती हुई आ गयी
इस समय बरसात की झड़ी…..
ऐसा लग रहा था मानो हर चेहरा कुछ कह रहा था….
अंदर ही अंदर दुख और दर्द सह रहा था…..
ए बादलों! तुम्हें समय का कोई भान नही….
लगता है मिला आकाश से, तुम्हें कोई ज्ञान नही….
इतनी मनमर्जी कर जाते हो…..
सँभलने का अवसर दिये बिना ही बरस जाते हो…..
तभी दिख गया अचानक से बेपरवाह बचपन……
चेहरे पर न कोई चिंतन न कोई मनन….
प्रकृति ने खुशी दिखाई तो हम भी दिखायेंगे…..
बरसती हुई बूँदों को ऐसे कैसे अकेला छोड़कर जायेंगे….
लालच मे पड़ गया बचपन की दहलीज
से बाहर आ चुका हुआ तन और मन…..
ऐसा लगा बूँदों ने अपनी आँखों को दिखाया हो….
आकाशीय बिजली ने जोर से हड़काया हो….
अपने हाथों और पैरों को सँभालते हुए खड़े रहते हो….
बारिश की बूँदों को दूर से ही देखकर हमेशा
लालच मे पड़े रहते हो…..
खुले आकाश के नीचे तो आओ….
बारिश की बूँदों से खुद को तो भिगो जाओ….
सारी चिंताओं और कष्ट को पल भर के
लिए तो भूल कर दिखाओ….
बरसती हुई फुहारों के साथ
तन और मन को भिगोते चले जाओ….