ऐ वक्त ! तू ठहर तो ज़रा……
पल भर के लिये, रुक तो ज़रा….
क्षण भर के लिये, थम तो ज़रा…..
कुछ समय के लिये ही सही…..
ज़रा धीमे से तो सरक ……
ऐसा लगता है !
इंसानी फितरत के अंदाज़…..
ज़रा से बदले बदले से हैं……
माना कि आदत मे नही
तेरे ठहरना…….
पल मे भूतकाल से ,वर्तमान मे सरकना…..
क्षण मे वर्तमान से ,भविष्य को ताकना…….
घड़ी की सुई के साथ…..
भागते रहना…..
‘अनवरत’, सिर्फ चलना… चलना… चलना..
चलते ही रहना….
देखते ही देखते …..
दिनों का, हफ्ते मे बीतना ……
हफ्तों का,महीने मे गुजरना …..
महीनों का, सालों मे बदलना …..
अचानक से नव वर्ष का, सामने दिखना……
एक बार फिर से, वक्त के पहिये का चलना……
कभी ठहर कर देखा है क्या, ऐ वक्त!
तूने जमाने को….
दौड़ते भागते हुये शहरों के साथ ……
ज़रा सा ,बदला बदला सा वक्त भी नज़र आता है ……
वक्त ही तो है ,जो कभी मुश्किल सा…..
तो कभी, आसान सा समझ आता है……
दिख जाता है ,ज्यादातर दौड़ता भागता…..
व्यक्ति की आरामतलबी के साथ….
कभी भी सामंजस्य नही बिठाता ……
वक्त ने कभी, सूर्य का साथ दिया……
भोर के होने की बात, बता दिया….
सरक गया, सूर्य की किरणों के साथ …..
छिप गया, बादलों की ओट मे……
जुट गया,चाँद और तारों की खोज मे……
दिख गया, चाँद और तारों की चमक के साथ……
कहीं ठहरा सा क्या वक्त भी महसूस हुआ ?….
तिमिर की गहराइयों मे…..
कर्म की परछाइयों मे……
वक्त नज़र आ गया…..
इंसान को, खुद की अहमियत बता गया…..
मत करना गरूर ,वक्त पर ऐ जमाना !!
ये वक्त ही तो है……
जो वक्त के साथ…..
आइना दिखा जाता है…..
अहम् तुर्जुबों के साथ …..
जीवन मे आगे बढ़ने की राह…..
खुद पर विश्वास ,और हौसलों के साथ
वक्त ही तो ,सिखा जाता है.…
(सभी चित्र pixabay से )
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एकदम सही कहा
ये वक्त ही तो है जो हमें आईना दिखा जाता है,
खुद के साथ खुद की पहचान करा जाता है।