मेरी इस कविता को मेरी आवाज मे सुनने के लिए आप लोंग इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
ये रास्ते भी बड़े अजीब होते हैं…..
तमीज़ के जरूरतमंद होते हैं…..
बिना बात के भी बोलते रहते हैं….
पता नही क्यूँ हर समय अपना
मुँह खोलते रहते हैं….
रास्तों मे मिलते हैं तरह तरह के लोंग….
बेमन के भी इनकी बातों को सुनना पड़ता है….
सुनने के बाद अपने विचारों को भी
रखना पड़ता है….
रास्तों पर दिखती हैं लालबत्तियाँ तमाम…..
करती रहती हैं,बदलते हुए मौसम मे
ईमानदारी से काम….
हमेशा ये अपनी महत्ता दिखाती है…..
गाड़ियों के सैलाब को गति कम
कर के रुकने पर मज़बूर कर जाती हैं…
रुके हुए वाहनो मे बैठे बैठे ही नज़र
आस पड़ोस से लेकर,आकाश तक
फिर जाती है….
आकाश की तरफ नज़रों को फेरते ही
दिख जाता है तारों का जाल….
दिखता है बिल्कुल “मकड़जाल”….
लेकिन वहाँ पर भी जीवन दिख जाता है…
तारों के ऊपर ही कबूतरों का झुण्ड
“मटरगश्ती” करता नज़र आता है….
बना लिया है इन तारों को “हिण्डोला”….
झूलते रहते हैं हमेशा इन तारों के ऊपर “झूला”….
समूह के सदस्यों का आपसी तारतम्य
यहाँ पर दिख जाता है…
कभी ऐसा लगता है कि हो रहा है गंभीर से
विषय पर “विचार विमर्श”….
तो कभी लगता है कि “मसला” ही नही है
करने को गंभीरता से “विचार विमर्श”….
अचानक से चंचलता के साथ समूह उड़ जाते हैं….
अपनी तरफ देखने पर मजबूर कर जाते हैं…
कब बढ़ायेंगी आप आगे अपनी गाड़ी!!
अब मेरी बातों को सुनिये…..
इन रास्तों की बातें कभी खत्म नही होने वाली
“दैत्याकर बस” ने बिल्कुल बगल मे खड़े होकर
चिल्लाकर ये बात बोली….
अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कन को सँभालते हुए
मैने ज़रा सा गुस्से के साथ “बेडौल” और “दैत्याकर बस”
की तरफ देखा….
मुस्कान के साथ अपने मुँह को खोली….
ज़रा सा प्यार से बोली…..
इन बातूनी रास्तों पर चलते-चलते
आप भी “वाचाल”हो लीं….
चलिये अब रास्तों के साथ अपनी बातों पर यहीं
“विराम” लगाइये…..
हरी बत्ती होते ही अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाइये…..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )