(12 August 2019)
बात बारिश की बूँदों की करिये तो
सामने आता है, ‘सावन मास’…
सावन मास और मानसून का होता है
अटूट सा साथ…..
मानसून के आते ही उमड़ते घुमड़ते
काले मेघा भी आ जाते है…..
नीले अंबर पर अपनी उपस्थिति
दिखा जाते हैं…..
मेघ भी अपनी ही धुन मे दिखते हैं…..
कभी ठहरे हुए से ,तो कभी पवन की गति के साथ
घूमते फिरते से दिखते हैं….
आकाश को देखते देखते ही …..
सुनाई पड़ती है मधुर सी आवाज…..
बातूनी सी वर्षा की बूंदें भी
तरह तरह की आवाजें निकालती हैं….
ऐसा लगता है, मानो !
सूखे से दानों को बिखेर दिया हो
धातु की बनी हुई तश्तरियों मे…..
कभी तो ऐसा लगता है, मानो !
छन्न.. छन्न.. छन्न..की आवाज के साथ, गिर रही हों…..
तुरंत ही धुआँ बनकर वापस
वायुमंडल मे प्रवेश कर रही हो…..
कभी तो ऐसा लगता है …
इन नन्ही नन्ही बूंदों ने पहनी हो
घुंघरूओं वाली पाजेब …..
रुनझुन रुनझुन सी आवाज…..
ये वर्षा की बूंदें ही तो निकालती हैं…..
बारिश की बूंदें भी बातूनी सी
समझ मे आती हैं….
कभी तो ये बूंदें, पत्तियों पर ठहरी हुई सी
दिख जाती हैं…..
मानो हो छोटे-छोटे बच्चों की टोली……
कर रही हो हंसी और ठिठोली.….
वहाँ भी ये बूंदें, अटर.. पटर …चटर …मटर.. करती हुई
समझ मे आती हैं…
ये बारिश की बूँदें भी बातूनी सी
नज़र आती हैं. ….
कभी सुनाई पड़ती है
इन बूंदों की निश्छल सी खिलखिलाहट….
अपने बातूनी स्वभाव को, खिलखिलाते समय भी
बतला जाती हैं…..
ये बारिश की बूँदें भी बातूनी सी
दिख जाती हैं…..
तेज बारिश के समय आंगन मे …..
चहलकदमी करते हुए नज़र आती हैं…..
समझ मे नही आता किस उधेड़बुन मे जुटी हैं…
छज्जों के ऊपर इकट्ठी हुई बारिश की बूँदें ….
कतार बद्ध तरीके से
दौड़ती भागती नज़र आती हैं…..
दौड़ते भागते समय भी बातें करती हुई
दिख जाती हैं…..
लेखक की नज़रों से देखिये !
सच मे बारिश की बूँदों का
बातूनी स्वभाव समझ मे आता है…..
लेखक को कुछ बेहतर लिखने के लिए प्रेरित कर जाता है…