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विशाल इमारत के अंदर चारो तरफ था
चमकीले शीशे का संसार…..
जमीन से छत तक बनी हुई थी
शीशे से दीवार….
प्रतिबिम्बों का चारो तरफ दिख रहा था
मायाजाल……
ऐसा लग रहा था शीशा !सजीव चीजों के साथ-साथ
निर्जीव वस्तुओं के प्रतिबिम्ब को भी
परख रहा था…..
एक ही व्यक्ति अपने आप को कई
प्रतिबिम्बों मे देख रहा था….
कहीं हो रहा था व्यक्ति का आमना सामना….
तो कहीं था प्रतिबिम्ब को, अगल या बगल से झाँकना….
चारो तरफ दिखता हुआ प्रतिबिम्ब !
भ्रम का जाल सा बना रहा था….
कहीं व्यक्ति मुस्कुराता हुआ तो कहीं
शांत सा नज़र आ रहा था….
कोई अपने को सँवार रहा था….
तो कहीं सधे हुए भाव से, खुद को निहार रहा था….
कोई अपनी खूबसूरती पर इतरा रहा था…..
तो कोई ,खुद को देखकर ही आँखें चुरा रहा था….
जीवन के सफर मे भी चलते हुए व्यक्ति को …..
खुद के ही, अलग-अलग प्रतिबिम्ब दिखते हैं….
उन्हीं प्रतिबिम्बों के बीच मे इंसान उलझता और
उन्ही के बीच मे सुलझता है….
जीवन धीरे-धीरे आगे बढ़ता जाता है….
अचानक से एक नन्हा सा कीड़ा…..
उड़ान भरता हुआ,शीशों के संसार के बीच मे आ गया…..
पहचान पूछने पर ,अदब के साथ मुस्कुरा गया.…
अपना प्रतिबिम्ब देखकर! खुद पर इतरा गया…..
बोला शीशों की चमक देखकर,मै भी चला आया हूँ…..
लेकिन सच बताऊँ तो, भ्रम का मारा हूँ…..
दिख रहा अपने ही प्रतिबिम्ब मे, बेचारा हूँ…..
बड़ी देर से इधर से उधर उड़ रहा हूँ…..
अपना ही प्रतिबिम्ब चारो तरफ देखकर
उसी से लड़ भिड़ रहा हूँ…..
अपने पंखों को फैलाकर मेरी तरफ देखा
ज़रा सा अदब के साथ बोला…..
मनुष्यों को बार बार अपना प्रतिबिम्ब देखते हुए देखकर….
मै भी कौतूहल मे पड़ गया था….
बस उत्सुकतावश चला आया था….
प्रकृति ने हमे काम ज्यादा और ,जीवन छोटा दे रखा है….
हमारा जीवन हमे कर्मठता सिखाता है….
शीशों के कारण उत्पन्न होने वाले भ्रम जाल से ….
खुद को परे रखता हूँ…
हमे इन शीशों के संसार से, बाहर निकालिये…..
अब प्रकृति के बीच मे चलता हूँ….
सकारात्मक सोच के साथ , प्रकृति के बीच मे आने का संदेश
देता जाता हूँ….
तोड़ कर प्रतिबिम्बों का भ्रमजाल…
सार्थक और सकारात्मक जीवन, जीने की राह पर चलता हूँ…..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )