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पायल की रुनझुन 

by 2974shikhat July 25, 2017
by 2974shikhat July 25, 2017

​      July 25, 2017   

क्या सिर्फ “श्रृंगार”का ही एक महत्वपूर्ण

सामान होती है “पायल” ?

खूबसूरत “नजाकत” से भरी हुई
“मनभावन” सी निकालती है आवाज
करती है हमेशा मन को “घायल”।

पायल की  “रुनझुन” से इंसान क्या
देवता भी नही बचे।

बाल रूप के कान्हा जी के पांव को देखो
उनके पांव भी प्यारी सी पायल से सजे।

Image Source : Google Free

“नवजात शिशुओं” को भी तो उपहार मे
पायल दी जाती है।
चलने की कोशिश करते हुए नन्हे बच्चों
के पांव से निकली हुई
पायल की रुनझुन मन को बड़ा भाती है।

लिखी है कई कवियों और गीतकारों ने
पायल की कहानी।
गज़लों और भजनों मे भी छेड़ी गई है
रुनझुन मनभावनी।

पायल का नाम भजनों मे पैंजनियां हो गया।
“ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां”
को कानों के जरिए दिलों मे संजो गया।

Image Source : Google Free

महिलायें और हर उम्र की लड़कियाँ अपने
पांव को पायल से सजाती है।
इसी बहाने पारंपरिक गहनों को आधुनिकता
के संग्राम मे भी कभी कहीं अपनाती हैं।

कई विद्वानों के मुख से सुने थे
पायल के बारे मे उनके उद्गार ।
मेरे कानों को कभी न जँचे
उनके ये विचार।

पायल को लोगों ने सामाजिक बेड़ी
का नाम दे दिया।

इसी विचार के बहाने सुन्दर से गहने को
नारी के तन और मन से अलग कर दिया।

कभी-कभी आधुनिकता महिलाओं के
सिर पर चढ़कर बोली।
हमे नही पहननी रूढियों और दकियानूसियत
के दलदल मे धँसी हुई बेड़ी।

बदल दिया उन्होंने पायल का पारंपरिक नाम।
एन्कलेट बोलकर दे दिया आधुनिक नाम।

इलाज की कई पारंपरिक पद्धतियों ने भी
पायल की उपयोगिता को माना है।

पायल के जरिए शरीर पर पड़ने वाले दबाव ने
कई तरह के दर्द से उबारा है।

ऐसे ही नही बन गए हैं हमारे पारंपरिक
श्रृंगार के सामान।
तरह-तरह के गहनों से श्रृंगार के महत्व से है

समाज का एक बड़ा तबका अनजान।

गहनो की दुकान मे सजी हुई पायल बहुत
आकर्षक लगती है।

लटके लटके ही दूर से अपनी मधुर आवाज से
कानों को संगीतमय करती है।

पायल की रुनझुन हमेशा बड़ी मीठी सी लगती है I
आधुनिकता की बहती हुई बयार के बीच में
पारम्परिकता की बात , नारी समाज से कहती हुई लगती है I

JewelleryPayalTraditional Ornaments
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2974shikhat

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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