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प्रकृति जैसे ही बदलती है ऋतुएँ….
वैसे ही इंतज़ार करते हुए
त्योहार रास्ते मे खड़े दिखते….
दौड़ते भागते आ रहे हैं
नये नये त्योहार
भरते जा रहे हैं ,उमंग और उत्साह…
बेटी की विदाई होती है दुखदाई….
हर किसी की आँखों मे आँसू भर लाई….
माँ दुर्गा के पण्डाल ने भी यह बात…..
श्रद्था और भक्ति के भाव के साथ बताई…
विर्सजन के लिए तैयार थी सवारी….
बहती हुयी धारा मे माँ दुर्गा जा समायी….
सुबह करके माँ दुर्गा का विर्सजन….
ढल चुकी शाम मे हो गया, दशानन का दहन…
अचानक से चारो तरफ,भीड़ का रेला दिखा….
क्योंकि जगह जगह दशहरे और दीपावली का मेला सजा…
इस तरह के पारंपरिक त्योहार…
हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान…
रंग बिरंगे कपड़े पहने लोग दिखे….
तरह तरह की रोशनी और रंगों से बाज़ार सजे..
कहीं नाच गाने की धूम…
तो कहीं हो रही है,बच्चों की उछलकूद…
बदलता हुआ मौसम ,बदलती हुई बयार….
आधुनिकता के बीच मे भी सुरक्षित दिखते हैं
पारंपरिकता और संस्कार …..
बड़े अपने आप को ,बचपने से दूर रखने की कोशिश
मे सँभलते हुए से दिखते…
बस मेले की मस्ती को आँखों के ज़रिये ही
सहेजते हुए से दिखते…
दूसरी तरफ बच्चों का उत्साह परवान चढ़ गया….
कोई किसी चीज को देखकर मचल गया…
तो कोई ज़ोर से उछल गया…
कोई मचलते हुए बच्चे को,अपनी तरफ खींच रहा…
कोई रोते बिसूरते हुए बच्चों को, गोद मे भींच रहा…
देखकर इस तरह के मनोहर दृश्य चेहरे पर
मुस्कान छा गयी…
मेले की रोशनी की चमक
आँखों मे समा गयी…
( समस्त चित्र internet के द्वारा )
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Beautiful, Intense, and Truth!
Thanks😊