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कार के हार्न की आवाज सुनते ही दौड़ पड़ी “अस्मि”दरवाजा खोलने के लिए ।
शाम से ही उसे पापा की कार के हार्न का इंतजार रहता था । दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई देखा सामने रामू काका खड़े थे ,पापा की कार के ड्राइवर ।
वैसे ड्राइवर शब्द सुनना उन्हें बिल्कुल पसंद न था। अपने आप को “अपमानित” महसूस किया करते थे ड्राइवर बोलने से , इसलिए सब लोग रामू काका ही बोला करते थे।
“अस्मि” की आँखों मे सवाल देखकर अपने साथ लाए हुए”ड्राई फ्रूट्स”के बोरों को सँभालते हुए बोल पड़े ।अस्मि बेटा ये सारे “ड्राई फ्रूट्स” को आप स्टोर रूम मे रखवा दीजिए ,आपके पापा आ रहे हैं ,गेट से घुसते ही “तहसीलदार” लोग मिल गये ,उनकी समस्याओं को सुलझा रहे हैं।
पापा के IAS Officer होने के कारण कम से कम छोटे शहरों मे तो बड़े बँगले मिला करते थे।
किचन गार्डेन का कोई न कोई कोना वो अपने सोच विचार के लिए खोज ही लिया करती थी।
वैसे भी पूरा खानदान IAS,IPSया IFS Officer से ही भरा पड़ा हुआ था।
खुद भी तो वो Post Graduation के साथ-साथ “प्रशासनिक सेवा” की तैयारी कर रही थी ।
पता नही कैसे अमित भइय्या को ये “सनक” सवार नही हुई और वो USA चले गए ।अस्मि सोच मे पड़ गई , पापा की कलेक्टरी घर पहुँचने पर भी चलती रहती है । एक बार फिर से उसने अपनी गर्दन उचका कर बाहर की तरफ देखा पापा अभी भी बातों मे व्यस्त थे घर के अंदर की तरफ मुड़ ली वो।
अचानक से उसकी नजर ड्राई फ्रूट्स के बोरों पर पड़ी उसकी “छठी इन्द्री” सक्रिय हो गई, इसका मतलब IAS का resultआ गया ।पापा की जेब मे चुने हुए IAS candidates की list होगी ।अजीब सनक है ,पापा की बचपन से सुनती आई हूँ ,अस्मि की शादी तो मै IAS लड़के से ही करूंगा ।अगर Pure IAS officer नही मिला तो IPSया IFSलड़का भी चलेगा लेकिन प्राथमिकता IAS Officer की रहेगी ।
पिछले दो साल से पापा की और रामू काका की जोड़ी “प्रशासनिक सेवाओं” का रिजल्ट निकलते ही रोड के सहारे ही ट्रेनिंग सेन्टर लड़कों की खोजबीन करने पहुंच जाते हैं। पापा की पैनी निगाहें लिस्ट मे नाम के ऊपर सर्कल बना कर रखती थी ।एक एक लड़के के ऊपर तगड़ी रिसर्च हुआ करती थी अभी तक पता नही कितनी बोरी ड्राई फ्रूट्स दामाद खोजते खोजते बांट आये । ड्राई फ्रूट्स की “डेकोरेटिव पैकिंग” माँ के साथ मिलकर “अस्मि”ही किया करती थी।
देखते देखते दो साल गुजर गये चयनित लड़के या तो “विजातीय” होते थे , या पहले से ही शादी शुदा , या अपने साथ ट्रेनिंग करती हुई लड़कियों के चक्कर मे फँसे रहते थे।तभी हवा के तेज झोंके के साथ पापा लिविंग रूम मे घुसे बड़े प्यार से “अस्मि” के चेहरे को देखा ,तुरंत “अस्मि” की तरफ सवालों को फेंका आज आप बाहर नही आयी मुझे रिसीव करने,अच्छा आपकी प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कैसी चल रही है । अस्मि के जवाब को सुने बगैर जल्दी बाजी मे अपने कमरे मे चले गये।
उसे अंदर से माँ की आवाज सुनाई पड़ रही थी कल सुबह क्यों “मसूरी” जा रहे हैं आप , ज़रा अपनी तबियत का ख्याल करिये । हमारी बातों को भी कभी मान लिया करिये ।उसे पता था ,इतना बोलने के बाद माँ पापा का सामान पैक करने मे जुट गयी होंगी ।
अस्मि भी अपने कमरे मे चली गई ,उसे अपनी पेन्टिंग भी पूरी करनी थी ।कई दिनों पहले “अमृत लाल नागर”की एक उपन्यास लाइब्रेरी से लेकर आई थी ,अभी मुश्किल से तीन चार पन्ने ही पढ़ पाई थी ।अपने कमरे मे आराम से बैठ कर सोच विचार मे पड़ गई कि पहले पेन्टिंग पूरी करूँ या उपन्यास पढ़ूँ ,आखिरकार उसने पहले पेन्टिंग पूरी करने का निर्णय लिया और उपन्यास को अपने बैग मे डाल दिया ।
दो दिन आराम से निकल गए पापा का फोन दिन मे कई बार आता था ।आज सुबह भाई का फोन आने पर अस्मि का दिमाग थोड़ा हल्की फुल्की बातें कर के अच्छा हुआ ।प्यार से समझाया था भाई ने अस्मि को तू भी तो “प्रशासनिक सेवा” मे जाना चाहती है । पापा को गलत मत समझना प्यार करते हैं तुझसे वो तभी इतनी “भागादौड़ी” करते हैं ।देखना एक दिन उनकी “तलाश” पूरी होगी ,खोज लायेंगे तेरे लिये Pure IAS लड़का ।बड़ी जोर से “ठहाके” लगाये थे भाई बहन ने।
अपने “ख्यालों”मे खोई हुई “अस्मि” को लिविंग रूम से फोन की रिंग सुनायी पड़ी ।जल्दी से दौड़ी वो फोन उठाने के लिए, दूसरी तरफ से रामू काका की “रुआँसी” आवाज सुनाई पड़ी । अस्मि बेटा ! साहब को आज सुबह मसूरी से निकलने के थोड़ी देर बाद ही घबराहट के साथ चक्कर आया अस्पताल मे भर्ती करा दिया है ।अभी डाक्टर ने ICU मे भर्ती किया है आप मैडम के साथ जल्दी से आ जाइये ।टैक्सी से मत आइयेगा ट्रेन से देहरादून तक आइये, मै आ जाऊँगा आप लोगों को लेने ।
आप का और मैडम का टिकट शर्मा जी लेकर आ रहे हैं RAC टिकट है,लेकिन शाम तक शायद कन्फर्म हो जाये । अस्मि ने अपने शरीर मे कंपन सा महसूस किया ,तभी रामू काका की आवाज आई माइल्ड अटैक है, आब्सर्वेशन के लिए ICUमे रखा है। माँ का स्कूल से वापस आने का समय हो रहा था कलेक्टर की पत्नी होने के बाद भी “अस्मि”की माँ “साइन्स टीचर”थी।
पढ़ाने का काम “शौकियातौर”पर किया करती थी । आनन फानन मे माँ का और अपना सामान पैक करने मे जुट गयी, तभी माँ के आने की आहट सुनाई पड़ी ।”अस्मि” को इस तरह
से भाग भाग कर सामान पैक करते हुए देखकर उनकी घबराहट बढ़ गई ।क्या हुआ अस्मि सामान क्यूँ पैक कर रही हो ?
माँ को देखकर रो पड़ी “अस्मि”रोते रोते पापा के बारे मे बताया।माँ बेटी ने एक दूसरे को “सांत्वना” देते हुए आँसू पोछे और जाने की तैयारी करने मे जुट गयी।माँ की हालत ठीक नही लग रही थी “अस्मि” को । वैसे भी बदलते हुए मौसम मे अस्थमा का दौरा पड़ता है उनको ,आजकल BPभी तो बढ़ा हुआ है माँ का सोच मे पड़ गयी ।
जल्दी ही घर से निकल ली माँ बेटी स्टेशन के लिए गाड़ी बाहर खड़ी थी । ये “कानपुर” शहर भी बड़ा अजीब सा शहर है ।बड़े बड़े नेता आँफीसर की यहाँ के ट्रैफिक के सामने नही चलती । अपने मे मस्त रहने वाला शहर है ,ऐसा लगता है बड़े प्यार से बोल रहा हो “अपुन राम मस्ती मे आग लगे बस्ती मे”।
टिकट ए सी 3 टायर का था । रिजर्वेशन लिस्ट देखने पर एक बर्थ कन्फर्म दिखा रहा था । शर्मा जी और ड्राइवर ने सामान बर्थ पर रखवा कर माँ से वापस जाने की अनुमति ली और प्लेटफार्म पर “चहलकदमी”करने लगे । ट्रेन धीरे-धीरे सरकते हुए अपनी गति को कितनी जल्दी पकड़ लेती है”अस्मि”सोच रही थी । शहर पीछे छूट गया ,वैसे भी कौन सा इस ट्रेन को कानपुर शहर के ट्रैफिक के बीच मे चलना है, सारी की सारी स्पीड वहीं धरी रह जाती इस ट्रेन की , खुद का ट्रैक मिला हुआ है तभी तो इतनी जल्दी भागती है।
माँ की तरफ देखा आराम से सो गयी थीं वो ,आने से पहले भी उनको अस्थमा का अटैक पड़ा था दवाई का असर हो गया था । माँ को चद्दर उढ़ा कर अपनी साइड बर्थ पर आकर बैठ गई वो।रात होते ही बाहर का कुछ भी नही दिखाई देता बड़े अनमने भाव से अपने बैग के अंदर हाथ डाला “अमृतलाल नागर” की “उपन्यास”हाथ मे आ गई ।
पन्नों को पलटना शुरू किया था कि, पापा का चेहरा आँखों के सामने आ गया ।पापा का आँफिस से आना “अस्मि” का दरवाजे पर इंतजार करना ,”बचपन” से ही तो चल रहा है ये सब।
“अस्मि”को IASबनाना तो महत्वपूर्ण था ,उसके साथ-साथ Pure IAS लड़के से उसकी शादी कराना उससे भी ज्यादा जरूरी था ।
घंटो बैठ कर वो पापा के साथ बिताये हुए पलों के बारे मे सोच रही थी । सब कुछ “फ्लैशबैक” जैसा चल रहा था उसकी आँखों के सामने । उसकी आँखों से निकलते हुए आँसू उसकी गर्दन मे लिपटे हुए दुपट्टे को पूरी तरह से भिगो चुके थे । अचानक से उसकी “तंद्रा” टूटी किसी को अपनी तरफ बड़े ध्यान से देखते हुए देखा।
जल्दी से अपने आँसू पोछे और सामान्य होने की कोशिश करने लगी।
वो लड़का बड़ी जोर से हँस पड़ा अरे!आप इतनी जल्दी नार्मल हो गयी मै तो दो घंटे से आप की आँखों से “गंगा जमुना” बहते हुए देख रहा हूँ ,वैसे हाय !मेरा नाम निमेष है ,पढ़ा लिखा हूँ, अच्छे घर का हूँ लेकिन प्लीज “लफंगा” मत सोचियेगा रोते रोते “मुस्कुरा” दी “अस्मि” ।
आप अपनी “दुखी आत्मा”का कारण चाहे तो मुझे बता सकती हैं, बोलते हुए लैपटॉप पर अपना काम करने मे जुट गया ।अचानक से माँ की तेज होती हुई साँसों के साथ खाँसी की आवाज सुनकर माँ की बर्थ की तरफ बढ़ चली ।माँ को इनहीलर देकर वापस साइड बर्थ पर बैठ गई ।अचानक से उसे कानपुर शहर के ऊपर गुस्सा आने लगा अच्छे खासे लोग भी यहाँ आकर “अस्थमैटिक” हो जाये । कितना “प्रदूषण” है न!कानपुर शहर मे, उस लड़के ने “अस्मि”के चेहरे की “भाव भंगिमा”को देखकर बोला ।
आप भी “कानपुर”से हैं अस्मि ने पूछा! नही मै “इलाहाबाद” से हूँ ,लड़के ने जवाब दिया वैसे आप रो क्यों रही थी उसने फिर से पूछा । अंदर ही अंदर चिढ़ गई “अस्मि” । इसे मेरे रोने का कारण “उगलवाना”है । अपने को सहज करते हुए उसने पापा की तबियत के बारे मे बताया और एक बार फिर से “अमृतलाल नागर”की उपन्यास मे खो गयी ।
देहरादून पहुँचने मे थोड़ा ही समय बचा था , रामू काका के नंबर से फोन आ रहा था । अस्मि बेटा !आप देहरादून से टैक्सी करके आ जाइयेगा ,साहब के पास मेरा रहना जरूरी है ,उन्हें मै अकेला नही छोड़ सकता ,आज प्राइवेट वार्ड मे शिफ्ट हो जायेंगे साहब जी , ठीक है रामू काका !कहते हुए उसने लंबी साँस भरी और उपन्यास को बैग मे वापस रखकर कुछ समय के लिये अपनी आँखों को “झपकाने” की कोशिश करने लगी ।
अरे !आप तो “घोड़े बेच कर सोती हैं” की आवाज से उसकी आँख खुली ,देखा गाड़ी प्लेटफार्म से पहले आउटर पर खड़ी थी , वो लड़का एक बार फिर से “अस्मि” को चिढ़ाने वाले मूड मे था ।माँ को उठा कर सामान बाहर निकाल कर वाश रूम की तरफ बढ़ चली । वापस आयी तो माँ से बातें कर रहा था ।मै भी “मसूरी”जा रहा हूँ ,मेरे पास गाड़ी और ड्राइवर भी हैं ,आप लोगों को “अस्पताल” तक छोड़ दूंगा टैक्सी करने की कोई जरूरत नही ।
अस्मि के जवाब को सुने बिना माँ को सहारा देकर और कुली को लेकर आगे बढ़ चला । ये अजीब बात है माँ कैसे मान गई इसके साथ जाने को ,मुझे तो बहुत अक्ल सिखाती हैं, सफर मे लोगों के ऊपर भरोसा मत किया करो, सोचते सोचते गाड़ी मे बैठ गयी वो ।
अचानक से ब्रेक लगा सामने अस्पताल का गेट नजर आया, रामू काका बाहर ही खड़े मिल गये अस्मि को देखकर भावुक हो गये । सिर पर हाथ फेरकर बोले साहब जी अब ठीक हैं एक दो दिन मे डिस्चार्ज हो जायेंगे । रामू काका के साथ तेजी से पापा के वार्ड की तरफ अपने कदमो को बढ़ा लिया उसने ।
पापा को देखकर “फूट फूट” कर रो पड़ी । पीछे से माँ के साथ वो लड़का भी आकर खड़ा हो गया ।अस्मि को शांत करा कर पापा की “प्रश्न सूचक” निगाह उस लड़के की तरफ फिर गयी ।
आप कौन ?अस्मि की माँ ने जवाब दिया हमारे ट्रेन के सफर के साथी , इन्हीं के साथ हमने “देहरादून” से यहाँ तक का सफर पूरा किया ।
हंसते हुए उसने Good morning किया ,अपना introduction देते हुए बोला ,मै “निमेष” यहीं मसूरी से IASकी ट्रेनिंग कर रहा हूँ ,आप से और आपकी फैमिली से मिल कर बड़ा अच्छा फील कर रहा हूँ ।
अस्मि के बहते हुए आँसू रुक गये, माँ खड़े खड़े मुस्कुरा रही थी ।”अस्मि” के पापा ने सिर्फ एक लाइन मे सवाल पूछा मैरिड हो ।ऐसा लग रहा था उनकी “तलाश” आज समाप्त हो गयी निमेष का सिर न मे हिलते ही उन्होंने अपने सिर के बगल मे रखी लाल पेन से सर्कल की हुई लिस्ट फाड़ कर डस्टबिन मे डाल दी…..
(समस्त चित्र internet के सौजन्य से )