जीवन पथ की चलती यात्रा…
दिखती शांत स्थिर सी नदिया की धारा…
संसार की अज़ब – गज़ब सी रीति दिखाते…
वहीँ राख होती मानव की काया…
मानव मन भावों का सागर…
उद्वेलित मन बिखरा- बिखरा सा…
हे ज्ञान , बुद्धि ,विनय और विवेक के सागर…
जब मानव शोक संतप्त हो जाता…
वो कोमल सा तन शांत पड़ा है…
जीवन का शाश्वत सत्य यही है…
नदियों के तट की अलग सी भाषा….
प्रफुल्लित मन तो, प्रफुल्लित नदिया की धारा…
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