माँ के गर्भ मे,संतान के रूप मे पलती हुई, बेटी
मजबूत हौसले के साथ,जीवन के सफर की
शुरूआत करती है ।
समाज मे सुनी हुई है यह बात ।
बेटियाँ माँ के गर्भ से ही
जुझारूपन के साथ
पलती और बढ़ती है ।
वैज्ञानिक शोध ने भी स्वीकारी है यह बात ।
जीवन मे आने वाली परेशानियों को
तुलनात्मक रूप से
शिशु अवस्था से ही
मजबूती से पार करती है ।
अपने पांव पर चलना शुरु करते ही
नन्ही बेटी !
माँ सा, कोमल स्वभाव रखती है ।
प्यार और देखभाल को
अपने नन्हे-नन्हे हाथों और
तोतली जुबान से ही
समझाने लगती है ।
होती होगी जरूर
बेटियों की बातों ,और लाड़ प्यार मे
चमत्कारिक सी बात के साथ
देखभाल का एहसास ।
शायद इसी कारण,समाज मे
कठोर से कठोर हृदय वाले इंसानों मे भी
दिखाई पड़ जाता है
खुद की बेटियों के लिए
स्नेह और दुलार अपार ।
ईश्वर ने भी, कोमलता के साथ
बेटियों को बनाया होता है ।
अपनी सारी भावुकता को, बेटियों के भीतर
छुपाया होता है ।
फिर क्यों समाज मे बेटियाँ !
परिवार पर भार सी लगती हैं ।
‘कन्या भ्रूण हत्या’जैसी बातों से
दो चार होती हैं ।
महत्वपूर्ण लेकिन, ज़रा सा अचंभित करती है,यह बात ।
बेटियों के कंधों पर ही मानी जाती है
दो परिवारों की,सुख- शांति और बरकत की जिम्मेदारी ।
लेकिन हम इस बात से,नही कर सकते इंकार ।
बेटियों के साथ-साथ,बेटों के कंधों पर भी होता है
स्वस्थ समाज का ‘दारोमदार’ ।
बेटियों की चहचहाहट, मुस्कुराहट और खिलखिलाहट
होती है, सकारत्मकता से भरपूर ।
निश्चित रूप से बेटियों की खुशी से
अभिवावकों के हृदय को मिलता है ‘सुकून’ ।
समाज को बेटियों के प्रति समय रहते
इंसानियत को दर्शाना होगा ।
बेटियों की सुरक्षा, सम्मान और विकास से जुड़े
विषयो के प्रति, जागरूकता फैलाना होगा ।
सोये हुए अंर्तमन को, जगाना होगा ।
समाज और परिवार मे बेटियों के
आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा ।
गर्भ मे पल रही बेटियों को
भारतीय समाज मे मिलना चाहिए
जीवन को जीने का
ससम्मान अधिकार ।
अभिवावकों का,लाड़ प्यार और दुलार ।
दूर करना होगा बेटियों के प्रति
दोयम दर्जे का व्यहवार ।
भारतीय सामाजिक व्यवस्था की गाड़ी
सिर्फ एक पहिये पर, चल नही सकती
पुरुषों के साथ, स्वस्थ मानसिकता और
मजबूत इरादों के साथ बेटियाँ
आगे क्यों नही बढ़ सकती ?
सोचने पर मजबूर करती है यह बात !