किसी भी तरह की बुरी लत को कभी भी “सभ्य समाज” या “आधुनिकता” का “चोला” पहनाकर हमे उचित नही मानना चाहिए और अगर किसी भी प्रकार से “तम्बाकू”(Tobacco ) का उपयोग किया जा रहा है तो, व्यक्ति अपने साथ साथ अनजाने मे ही अपने आस पास रहने वाले लोगों को भी प्रभावित करता है।
अचानक से मेरे दिमाग मे आया हुआ यह मेरा विचार है …
“सकारात्मक दृष्टिकोण” की तरफ मोड़ने का मेरा “प्रयास” है……
रात का ही तो समय था
दिमाग मे “सुलगते”हुए विचारों
का धुंआ था ।
“उजियाली रात” थी
चाँद और तारों की “चमक”
हमेशा की तरह साथ थी।
कुछ अजीब सी बात “अनुसंधान”
करने के लिए मेरे दिमाग मे घुस गई ।
“जुगनू”की “चमक” और सिगरेट की “दहक”
का “तुलनात्मकअध्ययन” करने
मे जल्दी से जुट गई ।
दिमाग शरीर के साथ “तफरीह” के इरादे
से हो लिया ।
“उजियाली रात”मे रास्तों मे “जुगनू” को
खोजने के इरादे से “तल्लीनता” के साथ
खो लिया।
अचानक से दूर धरा से ऊपर कुछ
“चमकता” हुआ सा दिख गया।
मेरी नज़र अँधेरे मे खड़ी हुई गाड़ियों
और सायों की तरफ फिर गई।
कुछ पल के लिये वहीं “ठिठक” गई।
ऐसा लगा गाड़ियों के पास जुगनू ही जुगनू
“चमक” रहे थे।
ज़रा सा ध्यान से देखा तो जुगनू नही थे।
लेकिन कुछ अनजानो के मुँह और फेफड़े जल रहे थे।
जुगनुओं का दिखना तो केवल मेरा “भ्रम” था।
असल मे सुलगती हुई सिगरेटों का “क्रम” था ।
वो “ठहाके” “अट्टहास” ही तो लग रहे थे।
कैसे अनजान बन कर अपनी ही सुलगाई
हुई आग मे जल रहे थे।
अपने आप को ही धोखा देना इतना
आसान होता है क्या?
इस तरह की बुरी लतों से कोई इंसान
“अनजान” तो नही रहता है।
सोचने लगी मै जुगनुओं की चमक और
सिगरेट की दहक मे होती है क्या कोई समानता ?
कितनी विपरीत दोनो की “प्रवृत्ति”होती है।
चमकता हुआ जुगनू “उजाला” दिखाता है ।
“उत्साह” के साथ ही तो जीवन जीना सिखाता है।
जलती हुई सिगरेट की चमक खुद को फूँक कर
“धुंए का गुबार” निकालती है ।
अपने इसी गुण को इंसान के अंदर डालती है
भगवान शिव ने भी “गरल” पिया तो कंठ मे ही रोक लिया
क्यों इंसान धूम्रपान को अपनाता है?
“आधुनिकता” के “बदसूरत”से “चोले”को
“गर्व”के साथ अपने हाथों मे “सजाता” है ।
अपने शरीर के अंगों को धीरे-धीरे पूरी
“तन्मयता” के साथ जलाता है।
अपनी “क्षणिक” खुशी के “स्वार्थ” मे पड़ कर
खुद के चैन के साथ-साथ इंसान परिवार
का सुख चैन भी छीनता है।
( समस्त चित्र internet के सौजन्य से )