ईश्वर का दिया हुआ, अनमोल खजाना
जीवन होता है……
माँ की कोख से हर जीव…..
इस धरा पर, सार्थक जीवन जीने के लिए
जन्मा होता है……
नन्हे बच्चे का रुंदन और बंद मुट्ठी…..
दुनिया जहान की खुशियों के साथ
जमीं पर उतरती है……
नन्हा शिशु, बंद मुट्ठी की खुशी और
जरूरतों से अनजान रहता है…..
आश्चर्य मे डालती है यह बात…..
नव जीवन, मुट्ठी बंद करके ही हमेशा, क्यों सोता है?
जैसे जैसे शिशु अवस्था से, जीवन आगे बढ़ता है…..
मानसिक और, शारीरिक विकास के साथ इंसान
मुट्ठी को ,अपनी जरूरतों के मुताबिक खोलता और
बंद करता जाता है……
सभी धर्म और सभी संप्रदायों ने
इंसानियत और मानवता को
सर्वोपरि माना है …….
किस धर्म या संप्रदाय ने लिखी, या बोली यह बात……..
छल और धोखे के तले बनती हैं,विश्वास की इमारतें…..
या सहयोग के लिये बढ़ते हैं हाथ…..
चंद पंक्तियां ही ,कुछ लिखने के लिये प्रेरित कर देती हैं……
“मुट्ठियों मे कैद हैं जो खुशियाँ
सब मे बांट दो
हथेलियाँ एक दिन सबकी
खाली ही जानी है”
इन पंक्तियों के भावों की वास्तविकता…..
को जाने अनजाने मे, हर इंसान ने माना है…..
जिसने भी जन्म लिया है……
उसने बंद और, खुली मुट्ठी के खेल की
वास्तविकता को,जीवन के सफर मे समझा है…..
फिर क्यों समेटता है,नकारात्मक ऊर्जा को
अपने पास इंसान….
फिर क्यों शामिल होता है
अंधेरे रास्तों की होड़ मे…..
फिर क्यों समेटता चाहता है……
दूसरों के दुख और परेशानियों मे
अपनी खुशियों को……
सच है यह बात,कि बंद मुट्ठियों मे समेटी होती है
जो सकारात्मक खुशियाँ……
उसको बिखेर दो……
दूसरों के चेहरे की सकारात्मक खुशी से….
अपनी आत्मा को, जीवन के सफर मे
चैन और सुकून दो…..
आखिरकार होता है,जीवन पंचतत्वों का खेल…..
होना चाहिए,हर जीवन के पास……
सार्थक जीवन और, सकारात्मक खुशियों का मेल…….
(सभी चित्र internet से )